नदियों को बहना जरूरी है ओर सूर्य को उदय होकर अस्त होना भी जरूरी है,उसी प्रकार संतों को विहार करना भी जरूरी है--- भूतबलि सागर महाराज
सभी इंद्रों के मुखिया मुनिंद्र है --मुनि सागर महाराज
रिपोर्ट राजीव गुप्ता आष्टा जिला सीहोर
आष्टा।स्वाध्याय, धर्म आराधना नहीं की तो जिंदगी बैकार। अंतरंग ओर बाहय तप कुंथुनाथ भगवान ने किए।सकल ध्यान ओर शुक्ल ध्यान करने पर मोक्ष की प्राप्ति। धर्म ध्यान में कर्म धीरे-धीरे कटते हैं।शुक्ल ध्यान में कर्म शीध्र कटते हैं।यह मोक्ष ओर स्वर्ग का कारण भी है। पूजा, अभिषेक करना धर्म ध्यान में आता है। धर्म ध्यान करने वाले पाप से बचने के लिए धर्म आराधना करते हैं। नदियों को बहना जरूरी है, ओर सूर्य को उदय होकर अस्त होना भी जरूरी है,उसी प्रकार संतों को विहार करना भी जरूरी है। कुंथुनाथ मुनि नहीं मुनिंद्र थे।मुनिंद्र के चरणों में आचार्य, उपाध्याय भी नतमस्तक होते हैं। सभी इंद्रों के मुखिया मुनिंद्र है।
उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर विराजित पूज्य गुरुदेव मुनि भूतबलि सागर महाराज एवं मुनि सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। आपने कहा कि भट्टारक ज्ञानी,ध्यानी, शूरवीर होते हैं। शांतिनाथ महाराज के मन में मुनि पद के लिए भावना थी, उन्होंने कपड़े नहीं पहने और देवेन्द्र मुनि को दीक्षा दी। साधु संतों की भावना अच्छी हो,मीठे वचन बोले। ऐसे साधु का कल्याण होता है।आयु का कोई भरोसा नहीं,कब मृत्यु हो जाएं,इस लिए दीक्षा लेकर आत्म कल्याण करें। धैर्य वान बने। शांति सागर महाराज काफी बलशाली थे। मुनि सागर महाराज ने कहा कि भगवान के जीव को वैराग्य होने पर दैवादिक देव आते हैं । तीर्थंकर के आने पर हिंसा बंद हो जाती है। किसी भी तीर्थंकर में अंतर नहीं है,आप लोगों ने भगवानों को अलग -अलग रुप व महत्व दे रखा है।सुदर्शन चक्र से युक्त शांतिनाथ भगवान सांसारिक क्षेत्र में राजा थे। आपने मोहिनी कर्म को जीतकर कैवल्यज्ञान प्राप्त किया । सुदर्शन चक्र से कोई नहीं जीत सकता है। सुदर्शन चक्र परिवार पर नहीं चलता है। मोहिनी कर्म को जितना सरल नहीं है। राजाओं में राजसिंह थे शांतिनाथ भगवान। सबसे बड़ा महाव्रत चक्र है।राग से परे होकर वैराग्य धारण करें। परिग्रह दुःख का कारण है।