गुड़ी पड़वा पर शांति धारा कर देश की खुशहाली की कामना की।
पाठशाला जाकर धर्म की प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करें -- मुनि सागर महाराज
रिपोर्ट राजीव गुप्ता आष्टा जिला सीहोर
आष्टा।पाठशाला जाकर धर्म की प्रारंभिक शिक्षा सभी को ग्रहण करना चाहिए।लौकिक में भी सात फेरे होते हैं। पाठशाला भी विद्यालय हैं, जहां पहली कक्षा में प्रवेश लेकर धर्म ध्यान सीखना है। अहिंसा ही परमो धर्म है।नमिनाथ भगवान ने दुनिया के सभी साधु भेष छोड़ कर दिगंबर भेष अपनाया,सब कुछ छोड़कर ।वे परम दयालु थे, गृहस्थ आश्रम छोड़ दिया। अहिंसा हमारा अभिमान है,जैन शासन में अहिंसा का महत्व है। हिंसा दो प्रकार की होती है।एक द्रव्य हिंसा और दूसरी भाव हिंसा। जहां भी हिंसा है, वहां से कल्याण नहीं होगा।
उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री भूतबलि सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि सागर महाराज ने कहीं। आपने कहा कि जीव हिंसा वाहन चलाते समय होने पर उसे बचाने के भाव होना चाहिए,प्रायश्चित लेवे। भावों में हिंसा नहीं हो ,यह आने पर रात्रि भोजन छूट जाएगा। सभी हिंसा से दूर पृथक होना ब्रह्मचर्य है।जब तक आरम - शारम है, संयास व ब्रह्मचर्य नहीं आएगा।
सम्यकदृष्टि जान लेता है ।भाषा समझने के लिए साधुवाद का सहारा लेना होगा।तत्व सात है। मुनि सागर महाराज ने कहा कि संयास आश्रम वाले साधु को बारह परिग्रह से दूर रहना होता है और पिच्छिका - कमंडल के अलावा कुछ नहीं रखते हैं।मोक्ष प्राप्त करना है तो गृहस्थ आश्रम छोड़ कर मुनि दीक्षा लेना होगी। बिना दिगंबर मुद्रा के मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। पिच्छिका हमारे पास मार्जन के लिए है। मुनिश्री ने कहा ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें। प्रतिमा लेकर आत्म कल्याण करें।
पूर्व कर्म का फल भोगना पड़ता है।आरम - शारम को विराम देकर अहिंसा धर्म का पालन करें। दसलक्षण,सोलहकारण एवं अष्टांहिका महापर्व पर धर्म का पालन करें, इन पर्वों को सभी मिलजुल कर मनाया करें। नमिनाथ भगवान ने सबकुछ छोड़कर आत्म कल्याण करते हुए मोक्ष फल प्राप्त किया। विकार भावों पर नमिनाथ भगवान ने विजय प्राप्त की।राग वाली प्रतिमा रहेगी, तो वह हमें वीतरागी नहीं बनाएगी। नमिनाथ ने सभी इंद्रियों पर विजय प्राप्त की। दक्षिण में भगवान की खड़ी प्रतिमाएं हैं जो आपको दिगंबर के लिए प्रेरित करती है। धर्म के क्षेत्र में विकास बड़ा है ,लेकिन अहिंसा में गिरावट आई है। पहले सैकड़ों पंचकल्याणक प्रतिष्ठा होती थी,आज हजारों पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव हो रहें हैं। अनेक काम मार से नहीं प्यार से होते हैं। क्रोध से नहीं क्षमा से जीतने का प्रयास करें। नमिनाथ भगवान की तरह सरल बनें। नगर के सभी जिनालयों में गुड़ी पड़वा पर्व पर शांति धारा कर देश की खुशहाली की कामना की गई।