अटल जी को भीष्म पितामह की तरह इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था*--शशिकांत द्विवेदी : NN81

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अटल जी को भीष्म पितामह की तरह इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था*--शशिकांत द्विवेदी : NN81

29/12/2024 | दिसंबर 29, 2024 Last Updated 2024-12-29T07:20:42Z
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 *अटल जी को भीष्म पितामह की तरह इच्छा  मृत्यु का वरदान प्राप्त था*--शशिकांत द्विवेदी 



*मालवीय जी वामन देवता की तरह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए सैकड़ों एकड़ जमीन नाप दी थी* - अशोक चौधरी 

राजनांदगांव /  भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी की 100 वीं जयंती सुशासन दिवस व महामना  जी की 163 वीं जयंती अवसर पर छ्त्तीसगढ़ साहित्य समिति द्वारा श्री गणेश मन्दिर मे परिचर्चा एवं काव्य-‌गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें बडी संख्या में उपस्थित कवि साहित्यकारों‌ ने उपरोक्त महापुरुषों को कृतज्ञता पूर्वक स्मरण करते हुए इन्हें श्रद्धित भाव से नमन किया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राज्य शासन द्वारा ठा०प्यारेलाल सहकारिता सम्मान से सम्मानित ओजस्वी कवि /‌साहित्यकार शशिकांत द्विवेदी जी थे अध्यक्षता समाजसेवी श्रीमती शारदा तिवारी (अधिवक्ता) ने की। इस अवसर पर विशेष अतिथि के रूप में साहित्य समिति के संरक्षक अशोक चौधरी, दिग्विजय कालेज हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ शंकर मुनि राय, राजभाषा आयोग के आत्माराम कोशा "अमात्य" साहित्यकार कुबेर साहू, समाजसेवी,कवयित्री श्रीमती किरण अग्रवाल, कमला कालेज के प्रोफेसर के,के, द्विवेदी जी उपस्थित थे। ज्ञान की देवी मां सरस्वती, अटल‌ जी व महामना जी के तैल‌चित्र पर माल्यार्पण कर प्रारंभ हुए साहित्यिक परिचर्चा आयोजन में मुख्य अतिथि श्री द्विवेदी ने कहा कि प्रभु यीशु के जन्म दिवस के दिन जन्म लिए देश के पूर्व प्रधानमंत्री,भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई जी को भीष्म पितामह की तरह इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। अति रुग्णावस्था में होने के बावजूद उन्होंने अपनी मृत्यु 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के दिन इसलिए नहीं होने दिया ताकि देश का राष्ट्रध्वज तिरंगा झूकने न पाए। भीष्म पितामह की तरह एक दिन बाद उन्होंने 16 अगस्त को अपनी देह त्यागी।श्री द्विवेदी ने इस अवसर पर अटल‌ जी की ओज पूर्ण कविता 'मौत‌‌ से मेरी ठन गई" का पाठ किया। इस दौरान सभी साहित्यकारो  ने  श्री द्विवेदी का सम्मान गुलदस्ता प्रदान कर किया गया। समिति के संरक्षक साहित्यानुरागी श्री चौधरी ने बताया कि महामना जी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना लोगों से एक- एक पैसे दान लेकर की थी। उन्होंने वाराणसी के राजा से जितना जमीन चाहो चलकर ले लो कहने पर वामन की तरह अपने ‌पग में नाप कर  सैकड़ों एकड़ जमीन दान में ली। भारत रत्न अटल जी को उन्होंने अज्ञात शत्रु बताते हुए कहा कि कांग्रेस सहित सभी दल‌ के लोग उनकी इज्जत व सम्मान किया करते थे।

*गीत नया गाता हूं से अटल जी को याद*

कार्यक्रम का काव्यात्मक शुरूआत छ० ग० राजभाषा आयोग के जिला समन्वयक/ वरिष्ठ कवि साहित्यकार आत्माराम कोशा "अमात्य" द्वारा अटल‌ जी की कविता "गीत नया गाता हूं", से  किया गया वहीं परिचर्चा की शुरुआत समिति के सचिव मानसिंह मौलिक ने प्रभु यीशु को उनकी जयंती पर याद करते हुए भारत रत्न अटल जी व महामना जी को देश को सच्ची राह दिखाने वाले महापुरुष बताया। महामना मदन मोहन मालवीय जी को याद करते हुए कवयित्री किरण अग्रवाल ने बताया कि महामना जी जब हिन्दूस्तान पत्रिका का संपादन करते थे तब उनके पिता बी एल  केडिया जी उक्त पत्रिका में आलेख लिखा करते थे। उन्होंने अटल जी को राजनेता होने के साथ कोमल‌ हृदय के कवि भी बताया।

*राष्ट्रवाद से सराबोर कवि अटल‌ जी*

दिग्विजय कालेज हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ शंकर मुनि राय ने कहा कि अटल जी न केवल राष्ट्रवादी नेता थे राष्ट्रवाद से सराबोर कवि थे।अटल व महामना जी को पाकर यह धरा धन्य हुई है। कथाकार कुबेर साहू ने अटल जी की इक्यावन कविता का जिक्र करते हुए महामना मालवीय जी व अटल‌ जी के राष्ट्र वाद को अपनाया जाना बहुत जरूरी बताया। कवि शत्रुघ्न सिंह राजपूत ने अटल जी की" हिंदू  तन-मन  हिंदू जीवन, हिंदू मेरा परिचय" कविता का पाठ कर तालियां बटोरी। वहीं हास्य-व्यंग्य के मंचीय कवि पद्मलोचन शर्मा मुंहफट ने कवि अटल जी की ओज युक्त कविता का गान करते हुए कहा - "चंद टुकड़ों पर इमान बेचने वालों ,,अदब से सिर झुकाओ तो कोई बात बने"। कवि विरेन्द्र  तिवारी "वीरु" ने पोखरण के परमाणु परीक्षण को याद करते हुए- "मरुभूमि से आगाज कर दिया अटल जी ने,, किसानों को क्रेडिट कार्ड दिया अटल जी ने",,, कहकर वाहवाहियां पाई।

*जी भरकर जिया,, मन से मरुं*,

कवयित्री अनिता जैन ने,अटल‌ जी की कविता -" मैं जी भर‌कर जिया,, मन से मरु,, मौत से मैं क्यों डरुं, का पाठ कर‌ उन्हें  नमन किया। इसी तरह ग्राम्य कवि ‌पवन यादव "पहुना" ने अटल व महामना जी दोनों ‌को देश का अमूल्य धरोहर बताते हुए अपनो‌ के मेले में ‌मीत नहीं पाता हूं, गीत नया गाता हूं का गान किया। कवि ओमप्रकाश साहू "अंकुर" ने छ्त्तीसगढ़ी में "मक्का- काशी तब्भे जाहू,, रक्तदान कर दूसर‌ के जान बचाहु, कहा । इसी तरह नारायण कवि ने "कलम कहती हैं उसके नाम , सुबह और शाम कर दूंगा" कहकर प्रभावित किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही श्रीमती शारदा तिवारी व आयोजक अशोक चौधरी जी ने अटल‌ जी व महामना जी के देश‌ के प्रति अविस्मरणीय योगदानों को नमन करते हुए सभी आगत कवि ‌साहित्यकारो का  धन्यवाद ज्ञापन किया। विभिन्न रसमयी  काव्य पंक्तियां के साथ परिचर्चा आयोजन का संचालन श्री कोशा ने किया वहीं काव्यायोजन का चूटीली क्षणिकाओ के साथ संचालन पद्मलोचन शर्मा मुंहफट द्वारा किया गया। उक्ताशय की जानकारी समिति के सचिव मानसिंह मौलिक ने दी।