संजू नामदेव खिरकिया। खिरकिया नगर परिषद की अध्यक्ष इंद्रजीत कौर महेंद्र सिंह खनूजा पिछले तीन वर्षों से नगर के विकास को प्राथमिकता देते हुए ईमानदारी और पारदर्शिता से काम कर रही हैं। लेकिन विकास के इस रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट उनकी अपनी ही पार्टी बन गई है। पहली बार सिख समाज से नगर परिषद अध्यक्ष बनीं इंद्रजीत कौर ने न केवल अपने कार्यों से उदाहरण पेश किया, बल्कि उन चुनौतियों का भी डटकर सामना किया, जो अपनों से ही मिलीं।
अबव टेंडर नहीं, ब्लो टेंडर: खिरकिया बनी अपवाद
जहां जिले की अन्य परिषदों में कार्यों की लागत अधिक अबव टेंडर बताकर शासन को नुकसान पहुंचाया गया, वहीं खिरकिया में इंद्रजीत कौर के नेतृत्व में कम दरों ब्लो टेंडर पर विकास कार्य कराए गए, जिससे शासन को करोड़ों का फायदा हुआ। उन्होंने अपने सीमित संसाधनों के बावजूद शहर में मूलभूत सुविधाओं का विस्तार किया। यह सब बिना किसी आरोप, कमीशन या भ्रष्टाचार के किया गया बावजूद इसके उनके खिलाफ विरोध का माहौल लगातार गहराता गया।
अपने ही लोग कर रहे हैं कटघरे में खड़ा
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेता उनसे इस्तीफे की मांग भी कर चुके हैं, जिसे उन्होंने साफ इनकार कर दिया। इंद्रजीत कौर का कहना है कि
जब कार्यकाल में कोई अनियमितता नहीं है, तो इस्तीफा क्यों? ये विरोध मेरे नहीं, भाजपा की छवि को नुकसान पहुंचाने वाला है।
अविश्वास की आहट: किस ओर जाएगा संगठन?
अब अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा तेज हो चुकी है। पार्टी के ही पार्षद लामबंद होकर संगठन स्तर पर शिकायतें कर रहे हैं। सवाल उठता है कि क्या यह संघर्ष कार्यशैली का है, या नेतृत्व के लिंग और धार्मिक पहचान से जुड़ी असहजता का परिणाम है?
नई राजनीति बनाम पुराना सोच
इंद्रजीत कौर उस राजनीति की प्रतिनिधि हैं, जो ईमानदारी, पारदर्शिता और विकास को केंद्र में रखती है। वहीं विरोध करने वाले वही पुराने समीकरण हैं, जो व्यक्ति नहीं, वर्ग देखकर निर्णय लेना चाहते हैं।