संवाददाता- संदीप यादव
📍 जलालपुर, अंबेडकर नगर | तहसील दिवस
आज का दिन सिर्फ़ समस्याओं के निस्तारण का नहीं, संवेदनाओं की मिसाल भी बन गया। तहसील दिवस पर एक नन्हा बालक अपने अभिभावक संग आया। जब सुनवाई पूरी हुई, तो वह बालक सीधे तहसीलदार श्री पद्मेश श्रीवास्तव जी के पास गया और बड़े ही आदरपूर्वक प्रणाम किया।
👨💼 तहसीलदार साहब इस संस्कारी बच्चे से अत्यंत प्रभावित हुए।
उन्होंने स्नेहपूर्वक पास बुलाकर पूछा –
"बेटा, पढ़ाई कहां करते हो?"
बच्चे ने जवाब दिया –
"गंगा गुरुकुलम, इलाहाबाद। मैं बड़ा अधिकारी बनना चाहता हूं।"
लेकिन फिर मासूमियत से कह बैठा –
"मेरा एक दोस्त मुझे लूजर कहता है..."
💬 तब तहसीलदार साहब ने जो कहा, वो आज हर बच्चे के लिए प्रेरणा बन गया –
> 🗣️ "तुम लूजर नहीं हो बेटा, तुम बहादुर और बुद्धिमान हो।
तुम्हारे भीतर गज़ब के संस्कार हैं।
एक दिन ज़रूर अफसर बनोगे – ये मेरा वादा है!"
📞 इतना ही नहीं, उन्होंने उसे अपना नंबर भी दिया और कहा –
> “कभी भी पढ़ाई या जीवन में कोई दिक्कत आए, तो मुझसे बेहिचक संपर्क करना।
मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं।”
🙏 यह कोई साधारण मुलाकात नहीं थी –
यह एक सच्चे लोकसेवक की संवेदना,
एक बड़े अधिकारी की मानवता,
और एक छोटे बालक की उम्मीदों को संबल देने वाला क्षण था।
🌟 अगर हर अधिकारी पद्मेश श्रीवास्तव जी की तरह हो जाएं, तो
👉 न्याय भी मिलेगा और दिल भी जीतेंगे।
👉 इंसानियत और प्रशासन दोनों एक साथ मुस्कराएंगे।
🔖 इस संवाद ने साबित किया –
"पद नहीं बड़ा होता, बल्कि संवेदनशीलता और सेवा भावना से ही अधिकारी महान बनते हैं।"