*दलितोद्धारक सावित्री बाई फूले जैसे कार्य ही हमे विश्वगुरु बना सकते हैं - कैलाश परमार*
रिपोर्ट राजीव गुप्ता आष्टा जिला सीहोर एमपी
भारत जब गुलामी के अंधेरे में जीने को मजबूर था । दलित और शोषित वर्ग दुर्दशा का शिकार था तब महाराष्ट्र में दलितोद्धारक सावित्री बाई फुले ने महिलाओं के लिये देश का पहला स्कूल खोल दिया था । महिला शिक्षा और वह भी ठेठ पिछड़े और दलित वर्ग के लिए यह तात्कालिक भारत के लिये अनूठी पहल थी ।
आज हम दुनिया के विश्वगुरु बनने के जुमलों और शिक्षा नीति को लेकर चल रही बहस बाजी के बीच महात्मा ज्योतिबा फुले और उनकी धर्मपत्नी सावित्री बाई फुले के उन कठिन प्रयासों के बारे में विचार करें तो यही पाएंगे कि संकल्प पक्का हो , समाज सुधार की सच्ची चाहत हो और उद्देश्य में पवित्रता हो तो विपरीत परिस्थितियों में भी लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है ।
भारत के पहले महिला स्कूल की संस्थापिका और प्राचार्य श्रीमती सावित्री बाई फुले ने किसानों के लिए भी स्कूल की स्थापना की थी । उन्होंने 18 वी शताब्दी ने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ हम कदम बन कर विधवा विवाह के पक्ष में अभियान चलाया साथ ही कुरीतियों , अश्पृश्यता और शोषण के खिलाफ शिक्षा को अपना हथियार बना के दलित और पिछड़े वर्ग के लिये अभूतपूर्व काम किये ।
पूर्व नपाध्यक्ष कैलाश परमार ने शिक्षा और धर्म के नाम पर वर्तमान परिवेश में की जा रही राजनीति पर प्रहार करते हुए यह बात कही ।
कैलाश परमार ने सावित्रीबाई फूले की जयंती पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा कि देश मे समान शिक्षा नीति की बात करना और उसे व्यवहारिक धरातल पर उतारना तभी सम्भव है जब हर नागरिक प्रान्त और वहां की संस्कृति को समाहित कर इसे अमल में लाया जाए । कांग्रेस नेता ने कहा कि फूले दम्पति के कर्म और उद्देश्य में पवित्रता थी यही कारण है कि उनके कार्य श्रध्दा के साथ याद किये जाते हैं ।