स्लग:--मार्कंडेय ऋषि मुनि के अनुसार श्राद्ध करना अति आवश्यक है।
भारतीय सनातन संस्कृति एवं मनु की स्मृतियों का पालन करते हुए पितृ पक्ष में पितरो का श्राद्ध और तर्पण करने से मुक्ति मिलती है।
मनावर धार से हर्ष पाटीदार की रिपोर्ट।
विओ :-- पौराणिक कथा अनुसार पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पित्तर मुक्त हो जाते हैं और उन्ही के आशीर्वाद से हमारा जीवनसुखी से बिताते हैं। सात श्रीमात्रा देवी जी मंदिर के प्रतिमा के समीप श्राद्ध तर्पण करते हुए श्री संत श्री योगेश जी महाराज ने शास्त्रोक्त बातें कही । चतुर्दशी तिथि होने से आज अंबिका आश्रम बाकानेर में श्राद्ध किया। मार्कडेय ऋषि मुनि के अनुसार श्राद्ध तर्पण करना अति आवश्यक है ।श्राद्ध कर्म करने से मनुष्य को दीर्घायु, आरोग्य, धन, संपत्ति से वह स्वर्ग में सुख की प्राप्ति होती है। पुत्र, पिता के ऋण से मुक्त हो जाता है।
श्री सदगुरु सेवा समिति के जगदीश पाटीदार ने बताया कि अगस्त्य के फूल, कमल दल, बिल्व पत्र, गोमुत्र,चंदन स्टील मोगरा वह माल्ती के पुष्प ,दूध ,दही ,मिश्री, मक्खन साथ से पूजा की ,। प्रात: स्मरणीय ,पूज्यनीय श्री श्री 1008 श्री गजानन जी महाराज द्वारा बाकानेर में मान नदी में स्थित सातमात्रा देवी के प्रतिमा के समीपस्थ 85 वर्षो तक श्राद्ध किया था। उन्ही के अनुरूप श्री योगेश जी महाराज एवम श्री सुधाकर जी महाराज बाबाजी के मामा पक्ष का श्राद्ध पितृ तर्पण सन् 2007 से कर रहे हैं। धार्मिक संस्कारों को आने वाली पीढ़ी को भी यह कर्म सीखा रहे हैं।
ऋषियों ने हमारे जीवन को 16 संस्कारों में बांधा गया। गर्भाधान प्रथम संस्कार है और अंत्येष्टि अंतिम संस्कार है ।शास्त्रों में बताया कि मनुष्य उत्पन्न होते ही तीन प्रकार के ऋण बताए गए हैं। महाभारत काल में सबसे पहले अत्रि मुनी ने महर्षि निमि को ज्ञान दिया था। भीष्म पितामह ने धर्मराज युधिष्ठिर को पितृपक्ष में श्राद्ध और उसके महत्व को समझाया था। महर्षि निमि के पुत्र की आकस्मिक मृत्यु होने से महर्षि दु:खी होकर वह अपने पूर्वजों का आहवान करना शुरू कर दिया था। पितृवंश धरती पर आ गए । तब से सारे ऋषि मुनियों ने श्राद्ध करना शुरू कर दिया था। श्री महाराज जी ने महुंआ के पत्तों की पत्त्तल बनाकर उसमें गऊ माता, कौआ और कुत्ता को अलग अलग - अलग भोजन करवाया गया। उसके पश्चात सभी मनुष्यो को भोजन प्रसादी खिलाई गई। आचार्य बंटी महाराज ने श्राद्ध तर्पण करवाया।