स्लग :---+---पूर्वजों का प्रति श्रद्धा और दया भाव रखना ही श्राद्ध है- श्री योगेश जी महाराज।
श्राद्ध करने से पितरों द्वारा आशीर्वाद मिलता है।
मनावर धार से हर्ष पाटीदार की रिपोर्ट।
विओ:------ श्री श्री 1008 श्री गजानन जी महाराज अंबिका आश्रम श्रीबालीपुरधाम में श्री योगेश जी महाराज एवम् सुधाकर जी महाराज के सानिध्य में श्राद्ध तर्पण हुआ। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक 16 दिनों तक को पितृ पक्ष कहा जाता है । दो तिथियां इकट्ठी होने से 15 दिन का श्राद्ध पक्ष माना गया है। श्राद्ध करने से पितृ ऋणो से मुक्ति मिलती है और पितरों काआशीर्वाद बना रहता है। गो ग्रास निकालना ,ब्राह्मणों को भोजन करवाने से पितृ प्रसन्न होते हैं । श्री अंबिका आश्रम बालीपुर धाम के संत शिरोमणि श्री योगेश जी महाराज ने बताया कि पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का यह अनुष्ठान का समय है । श्राद्ध बिना श्रद्धाऔर सम्मान के पूरा नहीं होता है।कुश, तिल, गाय,कौआ और कुत्ते को श्राद्ध के तत्व के प्रतिक के रूप में माना जाता है इसलिए इनको भोजन देने से यमराज प्रसन्न होते हैं।गाय वेतरणी नदी पार करवाती है ,कौवा यम का प्रतीक है वो दिशाओं का फलित बताया है ।श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त पिंडदान आदि का विशेष महत्व होता है। पितृ कर्म करने से व्यक्ति को अधिक पुण्य फल की प्राप्ति होती है ।। सतगुरु सेवा समिति के जगदीश पाटीदार ने बताया कि भारतीय सनातन संस्कृति में श्रद्धा का विशेष महत्व है ।श्रद्धा भाव प्रमुख होने से इसे श्राद्ध कहते हैं। श्रद्धा से समर्पित लोगों को पूर्वज भाव रूप में ग्रहण करते हैं ।पितृ शब्द का मूल उद्देश्य पूर्वजो प्रति श्रद्धा और उसके दीन दुखियों के प्रति दया भाव जागृत करना है। भारतीय सनातन के लोग अपने पूर्वजों की मृत्यु होने पर जलांजलि भी देते हैं। सभी भक्तों को पूडी, सब्जी, भजिए ,खीर मीर्च ,चावल, दाल खिलाई गई तथा ब्राह्मणों को दक्षिणा दी गई। बंटी महाराज, रवि सिंनगुन वाले, जगदीश पटेल ,पन्नालाल, अरूण जी महाराज आदि कार्यक्रम में सहयोगी थे।