कभी बांस की डलिया जलवादार थी,अब परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतेज़ाम करना मुश्किल : NN81

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कभी बांस की डलिया जलवादार थी,अब परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतेज़ाम करना मुश्किल : NN81

06/03/2025 | मार्च 06, 2025 Last Updated 2025-03-06T10:48:09Z
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 Reported By: Satendra Kumar 

Edited By: Abhishek Vyas @abhishekvyas99


कभी बांस की डलिया जलवादार थी,अब परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतेज़ाम करना मुश्किल :

 झाँसी- कभी बांस की डलिया जलवादार थी सूपा टोकरी भाजी-सबजी रखने की थाल का और इसके पंखे की हवा का हर कोई तलबदार था। कटेरा के मोहल्ला तालपुरा के मोपड़ी में रहने वाले करीब डेढ़ सौ परिवार पलते थे। आहिस्ता-आहिस्ता महँंगाई बढ़़ी।फिर आधुनिकता के दौर में प्लास्टिक-स्टील, क्रॉकरी के चलन इनकी 'चमक" छीन ली। अब न कारोबार अंत की तरफ बढ़ रहा है तो परिवार भूखमरी की कगार पर। कईयों ने किनारा कर मजदूरी का रास्ता पकड़ लिया है तो किसी कौ दिन बांस के टोकरी, पंखा, सूप भर[डलिया, पूजन सामग्री बनाने के बाद भी पृरा मेहनताना नहीं मिल पा रहा है।

कई बार इस धंधे को उठाने को आवाज उठी। लेकिन, नक्कर खाने में तृती की तरह दबकर रह गइ। कटेरा क माहल्ला तालपुरा मौहल्ला में बांस से बने बरतनों का कुटीर उ्योग अस्तित्व खोने लगा है। आधुनिकता की चकाचौंध में बांस बने बर्तनों पूजा सामग्री, चरेल उपयोग, शादी विवाह के सामान सहित साज-सैया गम होने लगी है।शिल्पकार मेबालाला, जितेन्द्र,मुकेश, पोखन देवी, कालीचरण, मिट्ठू वंशकार, विधा देवी, ज्ञानी बांशकर,मैदा देवी, फुलिया देवी,बताते हैं कि खास जाति बरार अपने हनर पर इसे जीवित रखे है। लेकिन,पेट नहीं भरता। भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गईं है। परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम किसी तरह हो पाता है।