भगवान की पूजा से ही अपने परिणामों को निर्मल बनाना है --मुनि भूतबलि सागर महाराज
भगवान की पूजा करने से निधत्ति निकाचित कर्मो की निर्जरा होती है--मुनि सागर महाराज
रिपोर्ट राजीव गुप्ता आष्टा जिला सीहोर एमपी
आष्टा।आप लोगों का विकल्प संकल्प के रूप में बना और आप सभी आठ दिनों के लिए विशेष रूप से धर्म आराधना कर रहे है ।भगवान की अर्चना करने से निधत्ति निकाचित कर्मो की निर्जरा होती है।भगवान की पूजा से ही अपने परिणामों को निर्मल बनाना हैं।
ऐसे नन्दीश्वर द्वीप में जहां हम जा नही सकते उन द्वीपों की भक्ति हम लोग प्रतिकृति बना कर यही पर पूजन कर रहे है ।भक्ति कई प्रकार से होती है ,कई लोग उपवास एकासन कर के पर्व को अपने-अपने शक्ति के अनुसार मना रहे है ,यह सब शुभ भावो का ही परिणाम है। शुभ भाव में भी आकुलता होती है यह भी पुण्य का कारण है।
उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर विराजित पूज्य गुरुदेव मुनि भूतबलि सागर महाराज एवं मुनि सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। आपने कहा कि दायित्व में बंधे हुए होने के बाद भी आप लोग इतनी सारी जवाबदारी निभा रहे है ,तीन लोक में ऐसे ऐसे अकृत्रिम जिन चैत्यालय में विराजमान जिनबिम्बों को नमस्कार करना बहुत महान पुण्य का बंध होता है।
गुणी जनों को देखकर हमारे ह्रदय में प्रेम उमड़ना चाहिए। हमें मोहि जनो को रागियों को देखकर समता आती है ।वीतराग भगवान में राग नहीं है,हम लोगो में राग भरा हुआ है। मुनि सागर महाराज ने कहा कुटुबम्ब को कुटुम्ब जैसा बना कर रखो। सामूहिक धार्मिक अनुष्ठानों के आयोजन से हम सभी लोगो को एक जगह बैठा कर हम धर्म प्रभावना कर सकते है। ओर सही क्या, गलत क्या ये बता सकते है। इतना पूजन विधान पूजन करते हुए समगुणी होते हुए भी हम एक नही हो पा रहे है ।मतलब हमारी पूजन पद्धति में अभी कही न कही कुछ कमी हैं ।उन कमियों को स्वाध्याय के द्वारा दूर करें ।स्वाध्याय ही परम तप बताया गया है ।जिससे हेय उपादेय का ज्ञान होता है।
पूज्य मुनि श्री भूतबलि सागर जी महाराज ने बताया कि भगवान की पूजा से ही अपने परिणामों को निर्मल बनाना हैं।जब तक भगवान की पूजा हो तब तक समस्त सांसारिक विषय भोग का त्याग कर के ही मंदिर जी मे प्रवेश करना चाहिए।पूजा करने से महान पुण्य की वृद्धि होती है ।नन्दीश्वर द्वीप में देव् लोग आठो याम भगवत भक्ति में लीन रहते है।पूजा की बड़ी भारी महिमा होती है । शास्त्रों में इसकी भारी महिमा बतलाई गई है। सम्यक भक्ति से हमारे कर्मो की बहुत निर्जरा होती है ।भगवत भक्ति करने में आप लोग तत्पर रहते हुए अपना मार्ग चुन कर भव से पार हो जाये ,यही हमारी भावना है ।हमसे पहले आप मोक्ष में जाकर विराजमान हो जाये हमारी तो यही भावना रहती है।