श्रावक भगवान, देव, शास्त्र एवं गुरु में अटूट आस्था रखें : NN81

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श्रावक भगवान, देव, शास्त्र एवं गुरु में अटूट आस्था रखें : NN81

21/03/2024 | March 21, 2024 Last Updated 2024-03-21T06:32:57Z
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 श्रावक भगवान, देव, शास्त्र एवं  गुरु में अटूट आस्था रखें -- मुनिश्री भूतबलि सागर महाराज 



हम समय के दुष्प्रभाव से निरोगी नही रोगी होते जा रहे है-- मुनि सागर महाराज 


रिपोर्ट राजीव गुप्ता आष्टा जिला सीहोर एमपी


आष्टा। श्रावकगण भगवान ,देव ,शास्त्र एवं गुरु में अटूट आस्था रखकर धर्म आराधना करेंगे तो पुण्य अर्जन होगा।हम समय के दुष्प्रभाव से निरोगी नहीं रोगी होते जा रहे हैं। अंग्रेजों ने फूट डालकर भारत में शासन किया,बाद में देश को महापुरुषों एवं देश भक्तों ने देश को आजाद कराया। परिवार को देखते हुए धर्म आराधना करें। जैन धर्म खुली किताब के समान है। समाज व परिवार में एकजुटता रहना चाहिए। सभी को धर्म -कर्म से जोड़ों। ज्यादा खाने वाले मर रहे हैं,कम खाओं और दूसरे को भूखा नहीं रहने देवें। 

   उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री भूतबलि सागर महाराज एवं मुनि सागर महाराज ने नंदीश्वर द्वीप महामण्डल विधान के अवसर पर आशीष वचन देते हुए कहीं। मुनिश्री ने सभी को जोड़ने का आव्हान किया। मुनिश्री भूतबलि सागर महाराज ने कहा पूजा आप लोगों के लिए है। नंदीश्वर द्वीप में 52 मंदिर है। श्रावक भगवान,देव शास्त्र और गुरु में अटूट श्रद्धा रखते हुए उनके जैसे बनने की चाहत रखते हैं। गृहस्थ वह है जो घर गृहस्थी का काम करते हैं। गर्मी की अष्टान्हिका है इसमें क्षमा रुपी अग्नि जलाकर माफी करना,मन में जो कषाय है उसे जलाना है। भगवान जैसे बनने का प्रयास करें।भोग की वस्तु को त्यागकर पुण्य अर्जन करें।संयम आएगा, कर्म नाश होगा। ऐसे भाव रखें,लोग रुढ़िवादिता को छोड़े। पूजा के समय नमः बोलें,स्वाह नहीं। बुराई ग्रहण नहीं करें, अच्छाई ग्रहण करें।इस अवसर पर पूज्य मुनि श्री मुनि सागर महाराज ने अपने  प्रवचन में बताया कि आज आपकी नन्दीश्वर द्वीप भक्ति पूजन का आधा भाग पूर्ण हुआ है। धीरे-धीरे यह पूर्णता को प्राप्त होगा। यह पर्व हमें समय- समय पर जगाने आते है। पर्व समाप्ति के बाद  सोना नही सजग रहना ओर जीवन को जीने का ढंग बदलना तभी पर्व को मनाने की सार्थकता होगी । मुनि सागर महाराज ने आगे कहा यह संसार है, यह असार है। अभी यहां है, कल कही ओर रहना होगा ।यह पंच प्रावर्तन अनादिकाल से चलता आ रहा है ।भोगो में रहने के कारण धर्म करने में मन नही लगता है। अपनी जीवन रूपी पतंग को संभाल कर उड़ाना, कही कट न जाये। अपनी सयंम रूपी डोर प्रेम ओर प्यार की डोर से इसे बांधे रखना। संभाल कर रखना कहीं यह जीवन निंद्रा गति में न चले जाये।संयुक्त परिवार में मिलकर रहने से एक दूसरे सभी मिलकर धर्म ध्यान में मन लगा सकते है।समय के दुष्प्रभाव से हम निरोगी नही रोगी होते जा रहे है ।जब तक मन है तब तक पूजन है ।जैसे इस शरीर को रखने के लिए शुद्ध भोजन की जरूरत है, उसी प्रकार इस मन को शुद्ध रखने के लिए जिनेंद्र भगवान की पूजन की जरूरत है।हम लोग मात्र छोटा बड़ा कम ज्यादा में उलझे हुए है ,संगठित नही हो पा रहे है ।समाज मे एक नही हो पा रहे है ।रामायण पड़ने के बाद भी हममें परिवर्तन नही हो पा रहा है ।आप लोगो के भाग्य है, दो भाई मिलकर रहते हो आज के समय मे सबसे बड़ा आश्चर्य है ।धर्म अपने लिए होता है ओर अपने को ही करना होता है ,अपने कल्याण हेतु होता है।