महाप्रभु जगन्नाथ प्राण प्रतिष्ठा से पहले भक्ति और आस्था से भक्त हुए भाव विभोर : NN81

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महाप्रभु जगन्नाथ प्राण प्रतिष्ठा से पहले भक्ति और आस्था से भक्त हुए भाव विभोर : NN81

02/04/2024 | April 02, 2024 Last Updated 2024-04-02T17:55:38Z
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 विदिशा लोकेशन गंजबासौदा

 जिला चीफ ब्यूरो संजीव शर्मा



 सलग्न----महाप्रभु जगन्नाथ प्राण प्रतिष्ठा से पहले भक्ति और आस्था से भक्त हुए भाव विभोर।

       


                        

गंजबासौदा जगन्नाथपुरी के रूप में विख्यात विदिशा जिले के मानोरा में तरफदार मानिकचंद परिवार द्वारा भगवान जगदीश स्वामी के प्रति उनकी अटूट भक्ति और श्रद्धा के रूप में दिए गए वचन को निभाने के चमत्कार के बारे में ही सुना था। लेकिन वेत्रवती घाट पर नौलखी आश्रम में विराजमान होने जा रहे महाप्रभु जगन्नाथ की भक्तों के साथ की गई पदयात्रा के दौरान और नगर में उनके भव्य आगमन के बाद घटित हो रहे कुछ ऐसे ही चमत्कार अब लोगों की जुबान पर हैं। यात्रा के दौरान पद यात्रियों को हुए चमत्कारों के अनुभव की लिस्ट लंबी है लेकिन जिन पद यात्रियों के साथ जो अनुभव हुए हैं उनका स्मरण और संस्मरण उन्हें अब रह रहकर याद आते हैं।  महाप्रभु जी के इन विग्रहों ने उड़ीसा से करीब 1200 किलोमीटर के सफर के साथ 40 दिन तक यात्रा करके नगर में प्रवेश किया था जिसका ग्रामीण सहित शहर में श्रद्धालुओं ने पलक पावड़े बिछाते हुए स्वागत कर नगर को जगन्नाथपुरी बना दिया था। 


मालूम हो कि नगर में भगवान जगदीश स्वामी के रथ यात्रा की परंपरा सिद्ध तपस्वी संत बाबा जगन्नाथ दास जी महाराज के द्वारा प्रारंभ की गई थी। उनकी तपस्वी स्थली वेत्रवती घाट स्थित नौलखी आश्रम में अब करीब 90 साल बाद विराट प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव में प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन 10 अप्रैल से 20 अप्रैल तक होने जा रहा है। इस आयोजन में आश्रम पर पहले से ही मौजूद भगवान जगदीश स्वामी के विग्रह के स्थान पर नवीन विग्रह बदले जा रहे हैं। महाप्रभु जगन्नाथ, बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के इन विग्रहों को श्रद्धालुओं का 40 पदयात्रियों एक जत्था आस्था, श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ जगन्नाथपुरी से पदयात्रा करते हुए नगर में लाया था। उड़ीसा जगन्नाथपुरी में परंपरा के अनुसार, हर 12 साल में भगवान जगन्नाथ स्वामी की मूर्ति परिवर्तित की जाती है। दशकों पुराने नौलखी आश्रम के जीणोद्धार के मौके पर यहां विराजमान जगन्नाथ भगवान के विग्रह को भी बदलने की प्रेरणा मिलने के बाद यह आयोजन संपन्न होने जा रहा है।

स्वप्न में मिली प्रेरणा के बाद यजमान बनकर छोड़ेंगे घी की आहुतियां


कहते हैं भगवान भक्त की श्रद्धा,भक्ति और भाव के प्रेमी होते हैं।  महाप्रभु जगन्नाथ ने नगर के ऐसे परिवार को अपनी सेवा की प्रेरणा दी जो ना तो कभी नौलखी आश्रम की गतिविधियों में संलग्न ना रहा और ना ही आश्रम के संतों के संपर्क में। नगर के बरेठ रोड़ निवासी मूर्तिकार घनश्याम प्रजापति ने प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव में महाप्रभु जगन्नाथ जी की ओर से सेवा की प्रेरणा मिलने के बाद अपने मित्रों के जरिए यज्ञ में सेवा की इच्छा प्रकट की जिसके बाद उनके मित्र सेवानिवृत शिक्षक रघुवीर सिंह रघुवंशी कालापाठा ने नौलखी खालसा के श्रीमहंत राम मनोहर दास महाराज को श्री प्रजापति के निवास पर लेकर गए। श्री प्रजापति ने स्वप्न में महाप्रभु जगन्नाथ जी के द्वारा सेवा करने की प्रेरणा के बारे में विस्तार से बताते हुए यज्ञ में यजमान बनने की इच्छा प्रकट की जिस पर श्रीमहंत ने सहमति देते हुए उन्हें यजमान बनाया। अब श्री प्रजापति अपनी पत्नी के साथ यज्ञ में घी की आहुतियां छोड़ेंगे। घनश्याम प्रजापति ने बताया की उन्हें जैसी प्रेरणा मिली थी उसके अनुसार वह महाप्रभु जी सेवा कर रहे हैं महाप्रभु ने उड़ीसा के फैक्ट्री संचालक को पदयात्रियों की सेवा का दिया स्वप्न महाप्रभु जगन्नाथ ने उड़ीसा से करीब 90 किलोमीटर दूर दासपल्ला नामक शहर के एक फैक्ट्री संचालक को स्वप्न देकर पदयात्रियों की सेवा का आदेश दिया था। यह फैक्ट्री संचालक सीमेंट के पाइप सहित अन्य सामग्री बनाते हैं। फैक्ट्री संचालक संजय दास महाप्रभुजी को लेने गए नगर के पद यात्रियों के उड़ीसा पहुंचने के तीन दिन पहले भगवान जगन्नाथ प्रभु के दर्शन करने जगन्नाथपुरी गए हुए थे। तभी उन्हें वहां स्वपन हुआ कि कुछ भक्त मुझे लेने के लिए यहां आ रहे हैं तुमको उनकी सेवा करनी है। महाप्रभु जगन्नाथ जी को लेकर पदयात्री जब उड़ीसा से होते हुए तीसरे दिन दासपल्ला नामक शहर पहुंचे तो एक मेडिकल स्टोर पर रात्रि विश्राम के लिए स्थान के बारे में जानकारी जुटाने के दौरान मेडिकल स्टोर संचालक ने संजय का मोबाइल नंबर देकर उनसे संपर्क करने के लिए कहा। पदयात्रा में प्रारंभ से लेकर आखिरी समय तक साथ रहे विकास मिश्रा ने बताया कि जैसे ही हमने संजय दास को फोन लगाया तो उनके मुंह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे और महाप्रभु जी द्वारा दी गई प्रेरणा का पूरा वाक्या बताते बताते उनका गला भर आया। उन्होंने बताया कि वह तीन दिन से पदयात्रियों के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। संजयदास ने ना केवल पद यात्रियों के रुकने के लिए स्थान उपलब्ध कराया बल्कि भंडारे के लिए 15 हजार रूपये की सामग्री भी भेंट की।