राम विवाह में नौलखी बना मिथिला, साधु संत और यजमान बने अयोध्या के बाराती : NN81

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राम विवाह में नौलखी बना मिथिला, साधु संत और यजमान बने अयोध्या के बाराती : NN81

16/04/2024 | April 16, 2024 Last Updated 2024-04-16T07:29:42Z
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 जिला ब्यूरो संजीव शर्मा

 गंजबासौदा

 15 4 2024






हेडिंग*राम विवाह में नौलखी बना मिथिला, साधु संत और यजमान बने  अयोध्या के बाराती*

*श्री महंत राम मनोहर दास महाराज ने बारातियों का फूल मालाओं से किया स्वागत*

*गंजबासौदा।* वेत्रवती घाट का नौलखी धाम मिथिला के रूप में उस समय नजर आया जब भगवान राम ने धनुष को तोड़कर माता सीता को वरमाला पहनाई तो पूरा पंडाल राम विवाह की खुशियों में झूम उठा। अयोध्यावासी के रूप में यज्ञ में बैठे यजमान और साधु संत राम जी की बारात की शोभा बढ़ा रहे थे। बग्गियों पर सवार दूल्हा बने राम जी की यह तीनों भाइयों के साथ बारात गाजे बाजे, डीजे के साथ कथा स्थल पहुंची जहां विवाह संपन्न हुआ। 

नौलखी पर  20 अप्रैल तक चलने वाले 10 दिवसीय धार्मिक आयोजन में भगवान जगन्नाथ स्वामी, भगवान सीताराम दरबार सहित अन्य देव प्रतिमाओं की विराट प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव में पहली बार आयोजित हो रही वाल्मीकि रामायण कथा में राम विवाह का प्रसंग इतनी धूमधाम से मनाया गया कि भक्ति भाव से विभोर श्रद्धालुओं को अयोध्या और मिथिला की छवि दिखाई दी। दूल्हे के रूप में बग्गियों पर बैठे सज धजकर राम,लक्ष्मण, भारत और शत्रुघ्न जी की बारात नौलखी के नवनिर्मित आश्रम से कथा स्थल तक पहुंची। बारात में ,साधु, संत, यज्ञ के यजमानों के अलावा अन्य धर्मालु श्रद्धालु ऐसे आनंदित नजर आए जैसे बारात नौलखी से नहीं, अयोध्या से चलकर मिथिला जा रही हो।


कथा में पूर्व सांसद एवं लोकसभा प्रत्याशी प्रताप भानु शर्मा ने भी प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव में शामिल होकर कथा व्यास एवं श्रीमहंत महाराज का सम्मान किया। कथा पंडाल में बारात के पहुंचने पर  कथा व्यास रत्नेश जी महाराज ने चारों भाइयों का फूल मालाओं से स्वागत किया वहीं बारात में शामिल साधु संतों एवं दूल्हा बने रामजी सहित तीनों भाइयों का महंत राम मनोहर दास महाराज ने हार फूल मालाओं से स्वागत किया। इस मौके पर राम जी के विवाह गीत में साधु संत और यजमान बने बाराती बनकर जमकर नाचे। राम विवाह प्रसंग पर बोलते हुए कथा व्यास रत्नेश जी महाराज ने कहा कि रघुकुल के विवाह की पद्धति की सर्वश्रेष्ठ पद्धति है। राम जी का विवाह नहीं, एक संस्कार है। जो हमें गृहस्थ जीवन को धर्ममय जीवन जीने का मार्ग सिखाती है। बेटा एक कुल को तारता है और बेटियां दो कुलों को।सीता ने अपने आचरण से मिथिला और अयोध्या का नाम रोशन संसार को एक दिशा दी है।