गुना महान छत्रपति शिवाजी की लोक नीति आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं , जितनी 350 वर्ष पहले थीं
जिला गुना से गोलू सेन की रिपोर्ट
उनकी बनाई हुई आर्थिक नीति , कूटनीति और राजकीय व्यवस्था का लोहा आज भी माना जाता है । जिन कारणों से छह जून 1674 को जब शिवाजी महाराज ने हिंदवी स्वराज्य की स्थापना की थी , वैसी ही परिस्थितियां एक बार फिर से देश में हैं । इन्हें हमें पहचानना है और सतर्क भी रहना है । यह आह्वान शिक्षाविद प्रोफेसर सतीश चतुर्वेदी ने संधू लैंडमार्क में श्रोताओं के बीच किया । श्री चतुर्वेदी साल भर से चल रहे हिंदवी स्वराज्य के 350 वर्ष पूरे होने के अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों की श्रंखला के समापन अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे । इस अवसर पर मंच पर कार्यक्रम समिति के अध्यक्ष महेन्द्र सिंह संधू मौजूद थे । समापन कार्यक्रम की अध्यक्षता समाजसेवी और शिक्षाविद संतोष यादव ने की ।
प्रोफेसर चतुर्वेदी ने अपने 55 मिनिट के उद्बोधन में शिवाजी का बचपन याद किया । किशोरावस्था की उन खूबियों पर प्रकाश डाला , जिनकी वजह से वह आगे चलकर महान छत्रपति शिवाजी कहलाए । उनके शासन काल में बनाई गई आर्थिक नीति कैसी थी । किस तरह किसानों को वह मदद करते थे और युद्ध कौशल की कला को उन्होंने उदाहरण के साथ समझाया । जब वह सिर्फ चौदह बरस के थे तभी उन्होंने विधर्मी मुस्लिम शासकों को उखाड़ फेंकने का संकल्प ले लिया था । शिवाजी 18 तरह की पगड़ियां धारण करते थे यह उनका सामाजिक समरसता का एक बेहतरीन उदाहरण है । इन पगड़ियों का समाज के सभी वर्गों से संबंध है । हिंदी के प्रोफेसर ने अपने उद्बोधन में उत्तर प्रदेश की स्थानीय बोली के पुट का इस्तेमाल करते हुए कहा, कि वह न सिर्फ युद्ध में पारंगत थे बल्कि हिंदू समाज के प्रत्येक वर्ग की चिंता करते थे । शिवाजी के पर्यावरण प्रेम को विस्तार से बताते हुए प्रो चतुर्वेदी ने कहा कि वह पेड़ों को किसी भी कीमत में कटने नहीं देते थे । इसी तरह देश प्रेम और मातृ शक्ति का सम्मान महान छत्रपति में कूट कूट कर भरा था । उल्लेखनीय है, हिंदवी स्वराज्य के 350 साल पूरे होने के अवसर देश भर में चलने वाले कार्यक्रमों की तरह गुना जिले में भी कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं ।
कार्यक्रम के दौरान बड़ी संख्या में शहर के गणमान्य नागरिक मौजूद थे । कार्यक्रम का संचालन दिनेश जाटव ने किया । जबकि आभार कार्यक्रम समिति के अध्यक्ष महेन्द्र सिंह संधू ने माना । अतिथियों का परिचय श्री सुधाकर जी ने दिया ।