स्लग:----श्री श्री 1008 श्री गजानन जी महाराज, श्री अंबिका आश्रम श्रीबालीपुरधाम में गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर सुंदरकांड, भजन संध्या एवं भागवत कथा हुई ।
आध्यात्मिक प्रगति के लिए सद्गुरु आवश्यक है।
गुरुदेव के चरणों की धुलि की भी महत्ता है।
मनावर धार से हर् पाटीदार की रिपोर्ट।
विओ:------श्री बालीपुर धाम में गुरु पूर्णिमा श्रद्धा आस्था और विश्वास के साथ गुरू भक्तो की उपस्थिति में मनाया गया । श्री योगेश जी महाराज द्वारा संध्या वन्दन, पूजन, हवन कर अभिषेक किया गया। अभिषेक के पश्चात हनुमान जी मंदिर में चोला पहनाकर वापस आश्रम में रामायणजी, गुरु जी की आरती कर गुरु पाद पूजन प्रारंभ हुआ ।
श्री योगेश जी महाराज ने बताया कि गुरु पूर्णिमा पर गुरु पर्व का बड़ा ही महत्व है। वेद पुराण शास्त्रों में कहा है कि आध्यात्मिक प्रगति के लिए गुरु आवश्यक है ।गुरु पूर्णिमा सनातन धर्म संस्कृति के अनुरूप है। सनातन संस्कृति में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं ।गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा और वेद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है ।
मान्यता ऐसी है कि वेदव्यास जिन्हें हिंदू धर्म का आदि गुरु माना जाता है। महाभारत ,वेदों और पुराणों की रचनाभी वेदव्यास जी की ।गुरु पूर्णिमा को भगवान कृष्ण ने अपने गुरु ऋषि शांडिल्य को ज्ञान प्रदान के लिए चुना था ।भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवान से भी बढ़कर माना जाता है ।गुरु पूर्णिमा और गुरु के प्रति अटूट श्रद्धा, गुरु पूजा और कृतज्ञता का दिन है ।गुरु कोई शरीर नहीं है। गुरु एक तत्व है जो पूरे ब्रह्मांड में विद्यमान है ।गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु से दीक्षा लेने, साधना को मजबूत बनाने और अपने भीतर गुरु को अनुभव करने का दिन है । गुरुदेव ही है जो जीना सिखाते हैं और मुक्ति की राह दिखाते हैं ।
हरि रूठे गुरु ठौर है ।
गुरु रूठे नहीं ठौर।।
हरि के रुठने पर तो गुरु की शरण मिल जाती है लेकिन गुरु के रुठने पर कहीं भी शरण नहीं मिल पाती ।गुरु महिमा में कहा गया है गुरुर्देवो धर्मों, गुर्रो निष्ठा परम् तप:।
गुर्रौ परतरम् नास्ति, त्रिवारम् कथयामि ये।। गुरु ही देव हैं गुरू ही धर्म है। गुरु में निष्ठा ही परम धर्म है। गुरु से अधिक और कुछ नहीं है ।भगवान विष्णु का अवतार होने के बाद भी श्री कृष्णजी ने गुरु सांदीपनि से शिक्षा ग्रहण की ।भगवान श्रीराम ने भी गुरु वशिष्ठ से ज्ञान प्राप्त किया ।
गुरु गीता में कहा गया है गुकार अंधकार का वाचक है और रुकार प्रकाश का ।गुरु ही अज्ञान का
नाश करने वाले ब्रह्म है ,इसलिए गुरु चरण सर्वश्रेष्ठ है ।महान संत गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि सद्गुरु नर रूप में नारायण है। गुरुदेव के चरणों की ही नहीं उनके चरणों की धूलि की भी महत्ता है ।
बंदॐ गुरु पद पदम परागा। जो सतगुरु के चरण कमलों की सुगंधित धूलि की वंदना करते हैं ।उनका कहना है कि चरण रज को श्रद्धा भाव से धारण किया जाए तो जीवन में कई तत्व प्रकट होते हैं ।पहला तत्व- सुरुचि है। हम कुरुचि से घिरे है। सुरुचि जागृत होते ही जीवन के प्रति रुचि उत्पन्न होती है। दूसरा तत्व है -सुवास।सतगुरु चरणों की धुली का महत्व समझ में आते ही जीवन सुगंधित हो जाता है ।हर एक के लिए यह पवन गुरुपूर्णिमा गुरु चरणों की इसी की कृपा की अनुभूति का पर्व क्षहै ।गुरु चरणों की कृपा होते हैं सबका कल्याण हो जाता है।
अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानान्जन शलाकाया।
चक्षुरून्ममीलितम्कसू येन तस्मे श्री गुरुवे नमः ।।
वेदव्यास के जन्म दिवस पर ही गुरु पूर्णिमा को पर्व मनाया जाता है। गुरु वेद व्यास महाभारत के रचयिता है। वेदव्यास ने जिस दिन शिष्य मुनियों को वेदों को और पुराणों का ज्ञान दिया था उसी दिन से गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है ।महर्षि वेदव्यास जी को ही प्रथम गुरु माना गया है। उन्होंने पहली बार मानव जाति को चारों वेदों का ज्ञान दिया था। इसलिए गुरु शिष्य के पवित्र संबंध का प्रतीक है। गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और उनके ज्ञान और मार्गदर्शन के लिए उनका सम्मान करते हैं।
सद्गुरु शिष्य के अज्ञान के को दूर कर उसमें सद्ज्ञान के प्रकाश भर देते हैं। जगदीश पाटीदार ने बताया कि गुरु पादुका पूजन दर्शन के लिए गुरु भक्तों की अपनी श्रद्धा और समर्पण के माध्यम से पूजन किया। 108 रामायण पाठ का वाचन हुआ तथा विगत 11 वर्षों से आलीराजपुर की भक्त मण्डल द्वारा बाबा जी की पालकी यात्रा पैदल चलकर श्रीबालीपुरधाम आये। मध्य प्रदेश, महाराज ,गुजरात भोपाल ,इंदौर बड़वानी धार, मनावर, कुक्षी एवं आसपास के गांवो के भक्त केंद्रीय बल विकास मंत्री सावित्री ठाकुर, मनावर विधानसभा क्षेत्र यश्सवी विधायक डॉ हीरालाल अलावा दर्शन हेतु आए। विशाल पैमाने पर भंडारा हुआ।लगभग 2,50,000भक् ने भोजन प्रसादी ग्रहण की।जिला पंचायत सदस्य कपील सोलंकी ,राधेश्याम भूत , जगदीश पाटीदार अध्यापक, रमेश अगल्चा, निलेश देवड़ा,सचिन बरफा, भोपाल से दशोरे जी, अमित चोयल, राजु देवड़ा, पन्नालाल गहलोत आदि का सहयोग रहा।