*बाड़ी रायसेन ब्यूरो चीफ चतुर नारायण शर्मा*
कहने को सिविल अस्पताल लेकिन सुविधाओं में बेहाल
विशेषज्ञों की कमी है अस्पताल की सबसे बडी बीमारी
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बरेली। इस अनुविभागीय मुख्यालय पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का सिविल अस्पताल के रूप में उन्नयन से बरेली, बाडी और उदयपुरा तहसील के लोगों को इलाज की सुविधाओं में विस्तार की उम्मीद जागी थी। लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे अस्पताल से लोगों को निराशा हो रही है। हड्डी से संबंधित बीमारी के इलाज के लिए अस्पताल आईं शशिप्रभा कहती हैं कि इतने बडे अस्पताल में हड्डी का डॉक्टर ही नहीं है। मजबूरी में किसी प्राइवेट अस्पताल में ही जाना पडेगा। अस्पताल परिसर में अलग— अलग बीमारियों के इलाज की उम्मीद से आए कई मरीजों ने भी कुछ ऐसी ही भावना जताई।
नहीं हैं इतने विशेषज्ञ
सिविल अस्पताल में अस्थिरोग विशेषज्ञ, मेडीकल स्पेशलिस्ट, सर्जिकल स्पेशलिस्ट, रेडियोलाजिस्ट और पैथोलॉजिस्ट नहीं हैं। नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ रीना चौहान चाइल्ड केयर लीव पर हैं। छह नर्सिंग आफीसर और तीन महिला गार्ड भी नहीं हैं।
रूठ जाती है एक्स—रे मशीन
सिविल अस्पताल की एक्स—रे मशीन 15 साल से भी अधिक पुरानी हो चुकी है। इसके सॉफ्टवेयर कभी भी उड जाते हैं। बाहर से इंजीनियर आने तक मशीन बंद पडी रहती है। यह मशीन एक संस्था ने अस्पताल को दान में दी थी।
गांवों में कोई नहीं
अंचल के गांवों में स्वास्थ्य विभाग की मौजूदगी कभी—कभार ही दिखती है। बागपिपरिया के रामकुमार उपाध्याय कहते हैं कि मंगलवार को टीकाकरण के दिन ही अस्पताल खुलता है। कुछ ऐसी ही स्थिति जामगढ सहित अन्य गांवों में है। गांवों में इंजेक्शन लगाने और पट्टी करने वाला भी कोई नहीं मिलता। मजबूरी में लोग प्राइवेट डॉक्टरों की शरण में पहुंच रहे हैं।
इनका कहना है—
पद स्वीकृति और पद स्थापना हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं। वरिष्ठ कार्यालय से अस्पताल की आवश्यकताओं को लेकर पत्राचार चलता रहतो है।
—डॉ हेमंत यादव
सीबीएमओ
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