प्रभुप्रेमी संघ ने मनाया स्वामी अवधेशानंद गिरिजी महाराज का 74वां जन्मोत्सव : NN81

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प्रभुप्रेमी संघ ने मनाया स्वामी अवधेशानंद गिरिजी महाराज का 74वां जन्मोत्सव : NN81

27/11/2023 | नवंबर 27, 2023 Last Updated 2023-11-27T15:32:10Z
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 प्रभुप्रेमी संघ ने मनाया स्वामी अवधेशानंद गिरिजी महाराज का 74वां जन्मोत्सव।



सतोगुण को बढ़ाने के लिए मनुष्य को सत्य, सदाचार, प्रेम और करुणा का अभ्यास करना चाहिए- प. अजय पुरोहित


रिपोर्ट राजीव गुप्ता आष्टा जिला सीहोर एमपी 



आष्टा- सतोगुण को शुद्धता, ज्ञान, प्रकाश और उत्तमता का गुण कहा जाता है। यह गुण मनुष्य को विवेक, सदाचार, प्रेम और करुणा की ओर प्रेरित करता है। सतोगुण के प्रभाव में मनुष्य सत्य, शांति और सुख की खोज करता है। रजोगुण को गति, परिवर्तन, कर्म और इच्छा का गुण कहा जाता है। यह गुण मनुष्य को कामना, लालसा और अहंकार की ओर प्रेरित करता है। रजोगुण के प्रभाव में मनुष्य फल की प्राप्ति के लिए कर्म करता है। तमस को अंधकार, अज्ञान, आलस्य और विकार का गुण कहा जाता है। यह गुण मनुष्य को मोह, भय और अज्ञान की ओर प्रेरित करता है। तमस के प्रभाव में मनुष्य सुख-दुख, जन्म-मरण के चक्र में फंस जाता है। इन तीन गुणों का संतुलन ही मनुष्य के जीवन को सुखमय बनाता है। जब सतोगुण प्रबल होता है, तो मनुष्य ज्ञान, सदाचार और करुणा की ओर अग्रसर होता है। जब रजोगुण प्रबल होता है, तो मनुष्य कर्म, इच्छा और अहंकार की ओर अग्रसर होता है। जब तमस प्रबल होता है, तो मनुष्य मोह, भय और अज्ञान की ओर अग्रसर होता है।


            इन तीन गुणों का रहस्य यह है कि वे एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। सतोगुण से रजोगुण और रजोगुण से तमस उत्पन्न होता है। यदि मनुष्य सतोगुण को बढ़ाने का प्रयास करे, तो रजोगुण और तमस स्वतः ही कम हो जाते हैं। सतोगुण को बढ़ाने के लिए मनुष्य को सत्य, सदाचार, प्रेम और करुणा का अभ्यास करना चाहिए। उसे कर्मफल से ऊपर उठकर कर्म करना चाहिए। उसे अपने मन को शांत और ध्यान में लगाना चाहिए। यदि मनुष्य इन तीन गुणों को समझकर उनका सही उपयोग करे, तो वह अपने जीवन को सुखमय और सफल बना सकता है। उक्त विचार स्थानीय मानस भवन आष्टा में प्रभुप्रेमी संघ के संस्थापक महापुरूष स्वामी अवधेशानंद गिरिजी महाराज के जन्मोत्सव के कार्यक्रम में पं. अजय पुरोहित ने व्यक्त किये। श्री पुरोहित ने स्वामीजी के जीवन परिचय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि स्वामी अवधेशानंद गिरिजी महाराज सनातन अध्यात्मक गुरू, संत, लेखक और दार्शनिक है, वह जुना अखाड़ा के आचार्य महामण्डलेश्वर हैं, उन्हे जुना अखाड़े का प्रथम पुरूष माना जाता हैं। जुना अखाड़ा भारत में नागा साधुओ का सबसे पुराना और बड़ा समुह हैं, स्वामीजी ने लगभग 12 लाख साधुओ को दीक्षा दी हैं और वह हिन्दु धर्म आचार्य सभा के अध्यक्ष हैं, ऐसे श्रोत्रिय ब्रम्हनिष्ठ गुरू को पाकर हम सभी आष्टा वासी धन्य हैं, उनके द्वारा संस्थापित प्रभुप्रेमी संघ अन्न, अक्षर, औषधि के माध्यम से जहां लोगो की सेवा कर रहा हैं वही अपनी धार्मिक गतिविधियो से इस आधुनिक जीवन में संस्कारो की भी फसल उगा रहा हैं।


कार्यक्रम का प्रारंभ प्रभुप्रेमी संघ के पदाधिकारियो व गणमान्य नागरिको द्वारा स्वामी जी के चित्र के समक्ष पादुका पुजन कर व दीप प्रज्वलन कर किया गया। उपस्थित जनप्रतिनिधियो व समाजसेवियो द्वारा पंडित अजय पुरोहित का सम्मान किया गया, कार्यक्रम में श्रीराम श्रीवादी, शिव श्रीवादी, दिपेश गौतम, जीवनराज मानवांचल, आनंद झाला, उत्सव साहू द्वारा सुंदर भजनो की प्रस्तुति दी गई। उपस्थित महिला मंडलो और प्रभुप्रेमीजन द्वारा पूज्य गुरूदेव की आरती संपादित की गई। सभी उपस्थितजनो का आभार प्रभुप्रेमी संघ के अध्यक्ष सुरेश पालीवाल द्वारा माना गया।