आठ दिवसीय अष्टान्हिका महा पर्व का हुआ समापन : NN81

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आठ दिवसीय अष्टान्हिका महा पर्व का हुआ समापन : NN81

28/11/2023 | नवंबर 28, 2023 Last Updated 2023-11-28T04:27:21Z
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 आठ दिवसीय अष्टान्हिका महा पर्व का हुआ समापन

नन्दीश्वर द्वीप विधान पूर्णता पर निकली जिनेन्द्र भगवान की शोभायात्रा


रिपोर्ट राजीव गुप्ता आष्टा जिला सीहोर एमपी



आष्टा-/ नगर के किला पर स्थित दिगम्बर जैन दिव्योदय तीर्थ पर परम पूज्य मुनि श्री मार्दव सागर जी महाराज के सानिध्य में आठ दिवसीय श्री नन्दीश्वर द्वीप महामण्डल विधान का आज पूर्ण विधि विधान के साथ समापन किया गया,एवं जिनेंद्र भगवान को रजत पालकी में विराजमान कर शोभायात्रा निकाली गई


समस्त आयोजन बाल ब्रम्हचारी श्री प्रशांत भैया जी के मार्गदर्शन में किया गया, इस अवसर पर पूज्य मुनि मार्दव सागर जी ने अपने प्रवचन में कहा कि आप सभी लोग सौभाग्य शाली है जो आज जिनेंद्र भगवान के समवशरण में बैठ कर नन्दीश्वर द्वीप के भगवान को नमस्कार कर रहे है उनकी भक्ति कर रहे है,उनकी आराधना पुण्य शाली भव्य व्यक्ति ही कर सकता है 

वह जो भी कार्य करता है विवेक से करता है आज ये मावठ पानी नही रत्नों की वर्षा हो रही है,क्योंकि किसान आदि सभी लोग इसका इंतजार कर रहे थे इसी अमृत वर्षा से समस्त प्रजा में खुशहाली आएगी,


धर्म मार्ग में एक दूसरे का सभी लोगो को सहयोग करना चाहिए,साधु लोग भी धर्म मार्ग में श्रावक को सहयोग प्रदान करते है,आज सम्भनाथ तीर्थंकर भगवान का जन्म कल्याणक पर्व है उनका जन्म श्रावस्ती नगर में हुआ था,सम्भनाथ भगवान को सोमनाथ भी कहा जाता है,

आज उनका जन्म कल्याणक पर्व है,कमेटी ने नन्दीश्वर द्वीप महामण्डल विधान की रचना कर समाज के लिए महान पुण्य का संचय किया है,इस महान पुण्य के कार्य से कमेटी को भी पुण्य में छटा अंश प्राप्त होगा ,समाज के मुखिया पर निर्भर होता है वह समाज को किस दिशा में ले जाना चाहता है,आष्टा की समाज बहुत अच्छी समाज है यहां जितने त्यागी वृति देखने को मिल रहे इतने कही ही देखने मे नही आते है,बड़ी धर्म मय समाज है आष्टा की,आप लोग इसी तरह हमेशा सामूहिक रूप से हर बार अष्टान्हिका महा पर्व में नन्दीश्वर द्वीप की आराधना किया करे,

 हमें अपनी आत्मा को पवित्र बनाने का काम करना चाहिए अभी हम बाहरी यात्रा तो खूब करते है

अंतर की यात्रा नही कर रहे है


अन्तरयात्री बने तभी अंतरर्यामी बन सकते है ,जन्म कल्याणक से अपने जन्म को सार्थक बनाना है,इस परिवर्तन शील सन्सार में सभी का जन्म होता है उसी का जन्म सार्थक माना जाता है जिससे समाज की राष्ट्र की उन्नति होती हो

शव ओर शिव में केवल एक मात्रा के अंतर है हमे शंकर की पूजा करना है जो शिव सुख को प्रदान करते है ऋषभ देव् भगवान ही शंकर है तीर्थंकर है सभी एक ही अर्थ के शब्द है जो मोक्ष सुख का मार्ग प्रशस्त करते है उन्ही को शिव कहा जाता है,उन्ही का आश्रय लेकर  हमे अपना मार्ग चुनना चाहिए,