भगवान का जैसा नाम, वैसा ही काम होता है। सुमति नाथ भगवान के सहारे सभी कर्मों को क्षय कर सकते हैं।मुनि भूतबलि सागर महाराज एवं मुनि सागर महाराज।
रिपोर्ट राजीव गुप्ता आष्टा जिला सीहोर एमपी
आष्टा।सुमति नाम जिनमें सुबुद्धि हो उनका नाम रहता है। पांचवें तीर्थंकर भगवान सुमति नाथ ने नाम के अनुरूप ही काम किए। कर्ता कर्म को करता है।आप सुमति भी और मुनि भी है। भगवान का जैसा नाम, वैसा ही काम होता है। सुमति नाथ भगवान के सहारे सभी कर्मों को क्षय कर सकते हैं। यथा नाम यथा गुण वाले हैं आप।वे विशेष केवल्यज्ञान मुनि थे। सुमति नाथ का तत्व पूरी तरह शुद्ध है। उन्होंने अनेक तत्वों की सिद्धि प्राप्त की। धर्म बचाना है तो पंथवाद छोड़े।आप लोग पंथ से जुड़े हैं।
उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर मुनि भूतबलि सागर महाराज एवं मुनि सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। मुनिश्री के प्रवचन की जानकारी देते हुए समाज के नरेन्द्र गंगवाल ने बताया कि मुनि भूतबलि सागर महाराज ने आगे कहा सुनो सभी की करों धर्म की।जो अच्छाईयां है उसे ग्रहण करें, बुराइयों को दूर करें। मुनि सागर महाराज ने कहा कि वीतरागता में पूरी दुनिया आर-पार दिखती है।आज व्यक्ति बिना समझे पापों को पकड़े हुए है।जैनेतर गणधर तक बन गए , लेकिन जैन लोग अन्य धर्म को मानने लग गए हैं। आजकल लेना- देना मुश्किल हो गया है। उधार लेकर व्यक्ति पैसा देना नहीं चाहते हैं। मुनिश्री ने कहा आप लोग आग लगाने वाले को जानते हैं ,लेकिन आग बुझाने वाले को नहीं जानते हैं।आग भी हम लगाते हैं और आग बुझाते भी हम है। महत्वपूर्ण यह है हम किससे जुड़े हैं। जो भी तत्व है वह एक रुप भी व अनेक रुप भी है। जैन बने लेकिन मिथ्यादृष्टि बन गए। सम्यकदृष्टि बनकर अपने जीवन को सार्थक करें। तत्व कुछ ओर है,हम खोज कुछ ओर रहे हैं।हम मात्र जीव है।भाव कर्म से देखें।आज एक रुपता नहीं है। मात्र पर्याय को देखा, मार्ग को नहीं।मन में भेदभाव है तो न तो घर में शांति और न ही मन में शांति होती। जिस प्रकार स्फूटमणि शुद्ध और श्वेत वर्णी होता है।शरीर साफ सुथरा लेकिन कर्म के कारण साफ नहीं रह रहा। किसी के धर्म और पर्व से तुलना न करें।उसे आप जाने- माने।