भगवान जैसे नहीं बनते तब तक स्तुति करें - मुनि सागर महाराज
किसी की आलोचना व निंदा नहीं करें।
रिपोर्ट राजीव गुप्ता आष्टा जिला सीहोर एमपी
आष्टा।अरहनाथ भगवान के बारे में लेखक समंतभद्र महाराज द्वारा स्तुति लिखी गई है।अलग गुण है।रावण के पास 99 हजार स्त्रियां होने के बाद भी पर स्त्री का अपहरण किया था। अरहनाथ भगवान में अनन्त गुण है। शब्द सीमित है, कहने में अशक्त है।एक अवगुणी गुणी हो गया।जैसी स्तुति वैसी भक्ति करें।भगवान जैसे नहीं बनते तब तक स्तुति करें। कभी भी किसी की आलोचना, निंदा नहीं करें। अच्छे काम भले ही कम करों, लेकिन बुरे काम नहीं करें।
उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर विराजित पूज्य मुनि सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहें। आपने कहा कि आप गुणी के इंद्र है, आपको पूजा करना नहीं आती है तो जो पूजा कर रहे हैं ।
उनके साथ बैठकर देखें और समझें। पुण्य पवित्र करता है।पाप कर्मा भारी होता है, पुण्य कर्मा हल्का होता है।पाप लोहे की बेड़ी के समान है, पुण्य स्वर्ण की बेड़ी के समान है। जिनकी वाणी पवित्र है,वह पुण्य वान है। आपको जो भी साधन मिले हैं वह पुण्य के कारण। अनंतनाथ भगवान की स्तुति व आराधना करें।पाप करते हो तो गुप-चुप और पुण्य करते हैं तो दिखावा करते हो। दिखावा नहीं करना चाहिए। लक्ष्मी दो प्रकार की होती है।एक शास्वत और दूसरी नश्वर।
मुनिश्री ने कहा अनन्तनाथ जी के पास चक्रवर्ती की तरह सम्पत्ति थी। मिथ्या दृष्टि को कभी भी वैराग्य नहीं होगा।चौदह रत्नों व लक्ष्मी वैभव युक्त थे। मुमुक्षु घर में नहीं रह सकते। रागी को मुमुक्ष नहीं कह सकते और वैरागी को रागी नहीं कह सकते। संसार असार लगा तो अनन्तनाथ ने संसार को छोड़कर वैराग्य धारण किया। राग है तो संसार में रहो और वैराग्य है तो हमारे पास आओ। जन्म के समय पुरुषों का काम नहीं और मरण के दौरान महिला को नहीं होना चाहिए।