रावण में निन्यानबे गुण थे और एक अवगुण , हमें गुणों को ग्रहण करना चाहिए -- मुनि सागर महाराज
रिपोर्ट राजीव गुप्ता आष्टा जिला सीहोर एमपी
आष्टा।रावण में निन्यानबे गुण थे और एक अवगुण था।लोग एक अवगुण को ही देख रहे हैं। हमें गुणों को ग्रहण करना चाहिए।भगवान की वाणी अमृत समान थी और हित -मित प्रिय है। भगवान की वाणी प्राकृत भाषा में निकलती है। भगवान की भाषा भक्तों को सुनने में आती है।जो भी भगवान की वाणी सुनते हैं, वह अमृत रसमय हो जातें हैं। धार्मिक स्थलों व कार्यों में राग-द्वेष नहीं होना चाहिए।
उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री भूतबलि सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। आपने भगवान की दिव्य ध्वनि का महत्व बताया। प्राचीन प्रतिमाएं बहुत अच्छी बनती थी। आजकल एक ही प्रतिमा में अनेक मुख जोड़ देते हैं, रावण की तरह प्रतिमा बनाई जा रही है जो आने वाली पीढ़ी को क्या संदेश देगी। आपकी दृष्टि अनेकांत है।
मुनि सागर महाराज ने कहा अरहनाथ भगवान की वाणी अनुसार चलने से हमारा कल्याण होगा। गुरु चरणों में बैठते तो बहुत कुछ सीखने को मिलता। जिनके भाग्य में गुरु के अंतिम दर्शन नहीं था वह बाहर घूमने चले गए थे। न्याय सभी को समझ में नहीं आता। इसी लिए कोर्ट बढ़ रहे और वकील बढ़ रहें हैं। किसी को टोकें तो प्रेम से,ने आने वाले व्यक्ति को सीखने का समय देवें।अगल - बगल वाले को साथ लेकर चलें। संगति गलत होने से आज विघटन अधिक हो रहा है।एक सिक्के के दो पहलू होते हैं। नोट के दो रूप होते हैं। जो करेगा सो भरेगा, अनेकांत को लेकर काम करें, विघटन नहीं होगा।पर के दोष देखने में आतुर रहते हैं, स्वयं के दोष नहीं देखते। जबकि गुण देखना चाहिए। अवगुण देखने में गुण ग्रहण नहीं कर पाते हैं। ।तप करने वाले तपस्वी होते हैं। समझेंगे तो दोष दूर होते हैं।