लोकेशन - लिधौरा
रिपोर्टर - अंकित सिंह राजपूत
संतों की महिमा ही सर्वोपरि है श्री दीनबंधु दास जी महाराज !
लिधौरा, नगर में आज श्रीमद् जगद्गुरु द्वाराचार्य अग्र मलूक पीठाधीश्वर पूज्य राजेंद्र दास जी महाराज देवाचार्य जी के कृपा पात्र शिष्य श्री दीनबंधु दास जी महाराज की सुमधुर वाणी में श्रीमद भक्तमाल कथा का वाचन किया जा रहा है भक्तमाल ग्रंथ से मानव जीवन में भक्ति का उदय कैसे होता है इस पर प्रकाश डाला एवं नाभा जी के द्वारा रचित भक्तमाल के सुंदर प्रसंग की व्याख्या की जिसने भी यदि अपने जीवन में इन तीन माता-पिता एवं गुरु को प्रसन्न कर लिया तो संसार की ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है जो उसे प्राप्त न हो यहां तक कि वह मोक्ष का अधिकारी हो जाता है संतों की कृपा से असंभव कार्य भी संभव होते देखे गए हैं भक्तमाल की कथा में एक चरित्र आता है की एक सदग्रस्त की संतान नहीं होती थी यहां तक की डॉक्टर के द्वारा किसी कारण सेगर्भाशय निकाला जा चुका था इसके बाद भी वह एक समर्थ गुरु के पास पहुंचे तो उन्होंने आशीर्वाद दिया की जा बच्चा तेरे घर में संतान होगी तो तो आश्चर्य लगने लगा कुछ समय बाद देखा कि उनके यहां बालक का जन्म हुआ जहां विज्ञान समाप्त हो जाता है वहां संतों की कृपा शुरू हो जाती है संतों की महिमा ही सर्वोपरि है संतों की कृपा से भी जीवन में समस्त सुख प्राप्त होते हैं आप सभी बुंदेलखंड वासी बहुत ही धन्य है जिन्हें की पूज्य गुरुदेव का सानिध्य प्राप्त हो रहा है भगवान को प्राप्त करने के लिए जीवन में नित्य सत्संग जरूरी है सत्संग के द्वारा ही जीवन में परिवर्तन संभव है क्योंकि हमारे जीवन में प्रमाण एवं आलस भरा हुआ है हमें सही एवं गलत का कोई ज्ञान ही नहीं है इसको सही जानने के लिए संत ही दृष्टि देते हैं और संतों की कृपा से हम इस भवसागर से पार हो सकते हैं ईश्वर प्राप्ति के लिए चार बातें आवश्यक हैं- समय अनुकूल होना चाहिए,वस्तु की पवित्रता होना चाहिए, मंत्रों का उच्चारण सही होना चाहिए, इसके बाद यदि हम ईश्वर का आवाहन करते हैं तो भगवत प्राप्ति संभव है और कथा में महाराज श्री ने कहा है भक्तमाल के प्रथम श्रोता श्री ठाकुर जीही है। संत ही मनुष्य को भवसागर से उतरने के लिए आते हैं जिस प्रकार कुएं में बर्तन गिर जाने पर लस्सी के माध्यम से लोहे का बना हुआ कांटा डालते हैं तो डूबे हुए को कांटे के सहारे से निकलते हैं इसी प्रकार मनुष्य को भवसागर से पार करने के लिए संत पुरुष ही कांटे का रूप लेकर पार करते हैं
इस अवसर पर महाराज सिंह कहां है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में प्रतिदिन पूजा करता है परंतु पूजा करने का प्रमाण कैसे सिद्ध होता है कि महाराज भगवान मेरी पूजा स्वीकार कर रहे हैं तो उसका प्रमाण एक ही है यदि पूजा करते समय गुरुदेव या कोई महान संत आ जाए या गुरुदेव का स्मरण हो जाए तो मां के चलना चाहिए कि आपकी पूजा ईश्वर स्वीकार कर रहे हैं इस अवसर पर संत दीनबंधु दास जी ने कई भक्तों का वर्णन किया जिसमें संत नामदेव जी, कबीर दास जी, दुर्वासा जी, एवं अम्रीश जी के चरित्र का वर्णन किया इस अवसर पर नगरवासियो सहित क्षेत्र के भक्तजनोने भक्तमाल कथा का रस पान किया