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प्रधानमंत्री आवास पर दबंगों का अवैध कब्जा, विधवा महिला बच्चों संग दर-दर भटकने को मजबूर — अधिकारियों की बेरुखी बनी पीड़ा की वजह - NN81

 


झाँसी - थाना उल्दन क्षेत्र के ग्राम पठाकरका निवासी एक विधवा महिला ने अपने पति के नाम पर बने सरकारी प्रधानमंत्री आवास पर दबंगों द्वारा अवैध कब्जा कर लिए जाने और जानमाल की धमकी मिलने का मामला उठाया है। लेकिन दुखद पहलू यह है कि पीड़िता की गुहार ना तो स्थानीय थाने ने सुनी, और ना ही उपजिलाधिकारी मऊरानीपुर अजय कुमार ने कोई मदद की।

पीड़िता सुनीता पत्नी स्वर्गीय हल्काई कुशवाहा ने बताया कि उसका पति मजदूरी कर परिवार का पेट पालता था। ग्राम पंचायत में यह परिवार वर्षों से रह रहा था। लेकिन पति की मृत्यु (दिनांक 04 मई 2021) के बाद ही परिवार के सदस्यों की नीयत बदल गई और भतीजे नंदकिशोर तथा सतन पुत्रगण जयराम कुशवाहा ने मकान पर जबरन कब्जा कर लिया। जो प्रधानमंत्री द्वारा आवास योजनांतर्गत स्व हल्काई कुशवाहा के नाम पर स्वीकृत किया गया था और मकान बन गया था जिस में परिवार निवास करता था ।भय के चलते सुनीता को अपने दोनों बच्चों के साथ मायके (गोंदिया) शरण लेनी पड़ी। जब वह 6 जुलाई 2025 को पुनः अपने गांव लौटी, तो मकान में प्रवेश करने से रोक दिया गया। थाना उल्दन में शिकायत देने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। "उपजिलाधिकारी से भी नहीं मिला भरोसा" सबसे दुखद स्थिति तब उत्पन्न हुई जब पीड़िता ने मऊरानीपुर के उपजिलाधिकारी अजय कुमार से न्याय की उम्मीद लेकर मुलाकात की। लेकिन वहां भी उसे निराशा ही हाथ लगी। पीड़िता के अनुसार, उपजिलाधिकारी महोदय ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि “आप लोग सिविल में मुकदमा दर्ज कराइए, वहीं से आपको न्याय मिलेगा।”

अब सवाल यह उठता है कि जब प्रशासनिक अधिकारी ही जिम्मेदारी से बचने लगें, तो एक गरीब विधवा महिला अपने बच्चों को लेकर कहां जाए? आखिर वह न्याय की उम्मीद लेकर और किन दरवाजों पर दस्तक दे?

""प्रशासन की उदासीनता पर जनता में रोष !

स्थानीय ग्रामीणों ने भी प्रशासन की निष्क्रियता पर नाराजगी जाहिर की है। ग्रामीणों का कहना है कि एक विधवा महिला के साथ ऐसा व्यवहार शर्मनाक है। यदि शासन-प्रशासन ने जल्द हस्तक्षेप नहीं किया, तो दबंगई और अन्याय के आगे आम जनता पूरी तरह असहाय हो जाएगी। पीड़िता की यह पीड़ा प्रशासन के संवेदनहीन रवैये पर एक गंभीर सवाल खड़ा करती है। क्या सरकारी योजनाओं के लाभार्थी केवल कागजों तक ही सीमित रहेंगे? क्या गरीबों के लिए ‘न्याय’ सिर्फ एक शब्द बनकर रह जाएगा?


अब देखना यह होगा कि क्या झाँसी प्रशासन इस मामले का संज्ञान लेकर एक पीड़िता को न्याय दिला पाएगा या फिर महिला अपने बच्चों को लेकर वर्षों तक भटकती रहेगी।

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