मुनीश कुमार पीलीभीत
उत्तर प्रदेश का पीलीभीत जिला अपने धार्मिक और प्राकृतिक स्थलों के लिए पहचाना जाता है। यहां मौजूद इकहोत्तरनाथ शिव मंदिर न सिर्फ श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि इसकी खास मान्यता और रहस्यमयी शिवलिंग इसे अन्य मंदिरों से बिल्कुल अलग बनाती है। सावन के पवित्र महीने में जब भक्तों की भीड़ भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए उमड़ती है, तब यह मंदिर भी विशेष आस्था का केंद्र बन जाता है।
पीलीभीत के पूरनपुर तहसील के पास, पीलीभीत टाइगर रिजर्व के जंगलों के अंदर, गोमती नदी के तट पर यह इकहोत्तरनाथ शिव मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि पौराणिक काल में यही वह स्थान था जहां ऋषि गौतम ने तपस्या की थी। एक कथा के अनुसार, इंद्र ने ऋषि गौतम की पत्नी सती अहिल्या का रूप बदलकर छल किया था। इस घटना से क्रोधित होकर ऋषि गौतम ने इंद्र को श्राप दिया। भगवान शिव द्वारा इंद्र को गोमती के तट पर 101 शिवलिंग स्थापित करने का आदेश दिया। उन्हीं में से 71वां शिवलिंग आज इकहोत्तरनाथ के रूप में प्रसिद्ध है।
इकहोत्तरनाथ शिव मंदिर रहस्यों और मान्यताओं से भरा हुआ है। यहां सावन के महीने में लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। मान्यता है कि मंदिर का शिवलिंग दिन में कई बार रंग बदलता है और यहां मनोकामना पूरी होने पर नल चढ़ाया जाता है। यही नहीं, मान्यता है कि रोज सुबह सबसे पहले स्वयं देवराज इंद्र आकर इस शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। मंदिर के कपाट बंद होने के बाद कोई भी परिसर में नहीं रुकता, लेकिन जब सुबह कपाट खुलते हैं, तो शिवलिंग पर फूल, जल और बिल्वपत्र पहले से चढ़े मिलते हैं। यह दृश्य भक्तों के लिए गहरी आस्था और चमत्कार का प्रमाण बन चुका है।
देशभर के मंदिरों में आमतौर पर प्रसाद, फल या वस्त्र चढ़ाने की परंपरा होती है, लेकिन इकहोत्तरनाथ मंदिर में एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है। यहां जब किसी भक्त की मनोकामना पूरी होती है, तो वह मंदिर परिसर में एक नल लगवाता है। यही वजह है कि मंदिर के आसपास सैकड़ों नल नजर आते हैं, जो श्रद्धा की अनूठी मिसाल पेश करते हैं। प्राकृतिक सुंदरता के बीच धार्मिक वातावरण का अनुभव श्रद्धालुओं को एक अलग ही ऊर्जा से भर देता है।