नैनपुर में आचार्य विद्यासागर जी महाराज जी को दी गई श्रद्धांजलि : NN81

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नैनपुर में आचार्य विद्यासागर जी महाराज जी को दी गई श्रद्धांजलि : NN81

20/02/2024 | फ़रवरी 20, 2024 Last Updated 2024-02-20T09:41:14Z
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 लोकेशन - नैनपुर


19/02/24

नैनपुर

सत्येंद्र तिवारी न्यूज नेशन 81के लिए नैनपुर से

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नैनपुर में आचार्य विद्यासागर जी महाराज जी को दी गई श्रद्धांजलि


आचार्य श्री को नम आंखों से  यादकर लोगो ने श्रद्धा सुमन किये अर्पित


नगर में कई बार आचार्य श्री का  हो चुका आगमन



नैनपुर   - नैनपुर नगर के वरिष्ठ प्रबुद्ध जन, एवम जैन समाज द्वारा नगरपालिका नैनपुर में आचार्य श्री विद्या सागर महाराज जी को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि समर्पित सभा का आयोजन किया। सभा में केंद्रीय इस्पात एवं ग्रामीण विकास राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते, पूर्व विधायक देवसिंह सैयाम, नगरपालिका अध्यक्ष कष्णा पंजवानी, स्थानीय जैन समाज, नगर के वरिष्ठ व्यवसायी, पत्रकार, पुलिस प्रशासन सहित स्थानीय जनप्रतिनिधि  एवम स्थानीय लोग बड़ी संख्या में पहुंचे। लोगों ने भावभीनी श्रद्धांजली अर्पित करते हुए आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी को याद किया। श्रद्धांजलि सभा में जैन समुदाय सहित बड़ी संख्या में प्रत्येक वर्ग के लोगो ने आचार्य श्री को याद करते हुए बताया कि नैनपुर में कई बार आचार्य श्री का आगमन हुआ। हमें उनके उपदेशों को अपने जीवन में उतरने की जरूरत है जो तप, त्याग, ध्यान, धारणा, समाधि, समाधान के साक्षात् स्वरूप थे आज चिर समाधि में लीन हो गए।

     उनकी जीवनी को पड़कर आपको भी बहुत कुछ सीखने मिलेगा की संसार सागर क्या हे और बेरागय तपस्या क्या होती हे एक संत की ये ही उनकी जीवनी।

श्रद्धांजलि

 संत शिरोमणि आचार्य गुरुवर 108 विद्यासागर जी महाराज शनिवार की रात 18 फरवरी 2024 को देवलोक गमन कर गए हैं l

     संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का जन्म १० अक्टूबर १९४६ को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। उनके पिता श्री मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता श्रीमंती थी जो बाद में आर्यिका समयमति बनी।

विद्यासागर जी को ३० जून १९६८ में अजमेर में २२ वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर ने दीक्षा दी जो आचार्य शांतिसागर शिष्य  थे। आचार्य विद्यासागर जी को २२ नवम्बर १९७२ में ज्ञानसागर जी द्वारा आचार्य पद दिया गया था, केवल विद्यासागर जी के बड़े भाई ग्रहस्थ है। उनके अलावा सभी घर के लोग संन्यास ले चुके है।उनके भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर जी से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर जी और मुनि समयसागर जी कहलाये।

आचार्य विद्यासागर जी संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएँ की हैं। सौ से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है।उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है।विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है।आचार्य विद्यासागर जी कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे हैं।

  आचार्य विद्यासागर जी के शिष्य मुनि क्षमासागर जी ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका है।मुनि प्रणम्यसागर जी ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक काव्य की रचना की है।


  संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का संस्कारधानी जबलपुर से गहरा जुड़ाव रहा है | 

  त्याग तपस्या की जीवांत मूर्ति ज्ञान के सागर पूज्य आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज देव रूप में पृथवी में एक सभ्य समाज के मार्ग दर्शक के रूप में भगवान तुल्य भारत भूमि के महान संत की क्षति अत्यंत दुःखद है |

 " संस्कारधानी एवं कुण्डलपुर से जुड़े कुछ अद्भुत चमत्कार "

 कुण्डलपुर आदिनाथ भगवान ' बड़े बाबा की मूर्ति स्थापना के दौरान मूर्ति को जब क्रेन जैसे शक्तिशाली आधुनिक यंत्र नहीं उठा पा रहे थे तब आचार्य श्री विद्या सागर महाराज ने अपने देव रूपी हाँथ का स्पर्ष किया जब जा कर बड़े बाबा की मूर्ति फूल के समान वह मूर्ति उठ गयी यह अद्भुत चमत्कार कुण्डलपुर वासियों के लिए ही नहीं वरन पूरे देश में चर्चा का केन्द्र रही है, आज भी आचार्य श्री के इस चमत्कार को याद किया जाता है ऐसे अनेकों चमत्कार आचार्य श्री विद्या सागर महाराज के अकस्मक देखने को मिलते हैं मानव रूप में साक्षात् भगवान तुल्य आचार्य श्री विद्या सागर जी के अंतिम दर्शन के लिए आस्थावानों का तांता लगा हुआ था वहीं डोंगरगढ की तपोभूमि पर शुरू से ही एक गाय आ कर बैठ गयी मानो वह देश की सभी गायों का प्रतिनिधित्व कर रही हो इससे सावित होता है कि आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज का गायों के प्रति कितना लगाव था |


" थोड़ा सा जानिए आचार्य श्री को "

कोई बैंक खाता नही कोई ट्रस्ट नही, कोई जेब नही , कोई मोह माया नही, अरबो रुपये जिनके ऊपर निछावर होते है उन गुरुदेव के कभी धन को स्पर्श नही किया। 

आजीवन चीनी का त्याग,

आजीवन नमक का त्याग,

आजीवन चटाई का त्याग,

आजीवन हरी सब्जी का त्याग, फल का त्याग,  अंग्रेजी औषधि का त्याग,सीमित ग्रास भोजन, सीमित अंजुली जल, 24 घण्टे में एक बार 365 दिन

आजीवन दही का त्याग,

सूखे मेवा (dry fruits)का त्याग,

आजीवन तेल का त्याग, 

सभी प्रकार के भौतिक साधनो का त्याग।

 थूकने का त्याग

एक करवट में शयन बिना चादर, गद्दे, तकिए के सिर्फ तखत पर किसी भी मौसम में।

पुरे भारत में सबसे ज्यादा दीक्षा देने वाले।

  एक ऐसे संत जो सभी धर्मो में पूजनीय ।

 पुरे भारत में एक ऐसे आचार्य जिनका लगभग पूरा परिवार ही संयम के साथ मोक्षमार्ग पर चल रहा है।

 शहर से दूर खुले मैदानों में नदी के किनारो पर या पहाड़ो पर अपनी साधना करना। अनियत विहारी यानि बिना बताये विहार करना ।

 प्रचार प्रसार से दूर- मुनि दीक्षाएं, पीछी परिवर्तन इसका उदाहरण,

आचार्य देशभूषण जी महराज जब ब्रह्मचारी व्रत से लिए स्वीकृति नहीं मिली तो गुरुवर ने व्रत के लिए 3 दिवस निर्जला उपवास किआ और स्वीकृति लेकर माने। ब्रह्मचारी अवस्था में भी परिवार जनो से चर्चा करने अपने गुरु से स्वीकृति लेते थे

और परिजनों को पहले अपने गुरु के पास स्वीकृति लेने भेजते थे । आचार्य भगवंत  जो न केवल मानव समाज के उत्थान के लिए इतने दूर की सोचते है वरन मूक प्राणियों के लिए भी उनके करुण ह्रदय में उतना ही स्थान है । शरीर का तेज ऐसा जिसके आगे सूरज का तेज भी फिका और कान्ति में चाँद भी फीका है

 ऐसे हम सबके भगवन चलते फिरते साक्षात् तीर्थंकर सम संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्या सागर जी के चरणों में शत शत नमन नमन नमन ।हम धन्य है जो ऐसे महान गुरुवर का सनिध्य हमे प्राप्त हो रहा है

प्रधानमंत्री हो या राष्ट्रपति सभी के पद से अप्रभावित साधना में रत गुरुदेव 

हजारो गाय की रक्षा , गौशाला समाज ने बनाई।

हजारो बालिकाओ को संस्कारित आधुनिक स्कूल 


इतना कठिन जीवन के बाद भी मुख मुद्रा स्वर्ग के देव सी,,, नमोस्तु गुरूदेव जी , नमोस्तु गुरूदेव जी, नमोस्तु गुरूदेव जी