व्रतों को लेकर उसे छोड़े नहीं, छोड़ना है तो पापों को छोड़ें -- मुनि सागर महाराज
रिपोर्ट राजीव गुप्ता आष्टा जिला सीहोर एमपी
आष्टा।जीवन में मित्र होना चाहिए, शत्रु नहीं। स्मरण प्रभु का करते हैं ,भक्त का नहीं।हम आयु के बल पर जी रहे हैं।एक समय खाएं वह योगी,दो समय खाएं वह भोगी और जो बार-बार खाएं वह रोगी है। साल भर में 48 पर्व आते हैं। आहार लें और कभी-कभी उपवास भी किया करें,शरीर उत्कृष्ट रहेगा। उम्र घटती है तो इंद्रियां काम कम करने लगती है, इसलिए कम खाएं। व्रत बड़े ही होते हैं, वृत्ति छोटा हो सकता है। व्रत ले तो वह टूटना नहीं चाहिए। व्रतों को नहीं छोड़ना चाहिए, पापों को छोड़ना चाहिए। सामाजिक कार्यों में दुश्मन आ जाएं तो उसे घूरे नहीं, बल्कि विनम्र होकर निवेदन करें कि भोजन भी यही करना चाहिए।
उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री भूतबलि सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। आपने कहा कि काशी में करवट लेने से कैलाश नहीं मिलेंगे, बल्कि उनकी आराधना, भक्ति करने पर मिलेंगे। कषाय में क्या है, क्षमा करके देखें उसमें अपार ताकत रहती है। मंदिर आने से धर्म और पुण्य बढ़ता है, कषाय गलती है, पापों का क्षय होता है। एक आत्मा है दूसरी परमात्मा।मरते समय णमोकार महामंत्र बोले, अहंकार नहीं करें। साधु अपने शिष्यों को छोड़कर आगे निकल जाते हैं। संसारी प्राणी है साथ रहो, कुटुम्ब के साथ रहे।जो अकेला है वह क्या समाधि मरण करेंगा। जीने की भावना, मरने की भावना आएं। समाधि भावना हो,राग द्वेष हटाएं। समाधि मरण के दौरान राग नहीं होना चाहिए। भोगों को स्मरण नहीं करें।यह शरीर भी आपका नहीं है। सम्यक समाधि मरण करें। जिनराज से भावना भाएं। मुनि सागर महाराज ने कहा कि समाधि भावना का चिंतवन करते रहना चाहिए दिन रात मेरे स्वामी में भावना ये भाऊ- देहांत के समय में तुमको न भूल पाऊं।पंचचपरमेष्टि का स्तवन निरन्तर चलते रहने चाहिए।देह से विदेह जाने का जब समय आता है ,उसे अंतिम समय कहते है।जिस समय यह शरीर साथ नही देगा ,उस समय देहांत का समय नजदीक होगा,केवल अंतिम समय में ही नही जीते जी भी भगवान को याद रखना बहुत बड़ा कार्य होता है।जीवन भर पड़े पाठो की कठिन परीक्षा होती है, समाधि,धर्म की चिंता भावना भव नाशिनी होती है ।समाधि करना चाहे तो
राज छोड़ना बहुत सरल है राग छोड़ना बहुत कठिन है। समता का भाव धरकर संतुष्ट कर दू, क्या है समता ममता का अभाव ही समता है।