बिना तपे कल्याण नही ,तप करना इंद्र भी चाहते हैं, लेकिन नहीं कर सकते -- मुनि सागर महाराज
पर्यूषण महापर्व के चलते भगवान पार्श्वनाथ के दरबार में पंच परमेष्ठी विधान भक्ति भाव से किया
रिपोर्ट राजीव गुप्ता आष्टा जिला सीहोर एमपी
आष्टा।पर्व जो इन दिनों में आया है ,उसी प्रकार हम भी आएं हैं। पर्यूषण महापर्व का सातवां दिन है।संयम के साथ तप जरूरी है। बिना तपे निखार नहीं आता है।जो कर्म बने हैं उन्हें अलग करने के लिए तप करना अनिवार्य है। जहां चारित्र ,वहां तप निश्चित होता है। बिना तप के निर्जरा नहीं।हम लोग तपना नहीं चाहते।
लेकिन वह तप नहीं कर सकते हैं। तपने और जपने के लिए यह मानव शरीर मिला है।बोधी, समाधि में शरीर को लगाएं।भोग क्षेत्र में तपते हो तो धर्म क्षेत्र में भी तपे पुण्य अर्जित होगा। बिना तपे तीर्थंकर का भी कल्याण नहीं होता तो आप हम का कैसे कल्याण होगा।
उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री भूतबलि सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। प्रवचन की जानकारी देते हुए समाज के नरेन्द्र गंगवाल ने बताया कि मुनिश्री ने कहा हमेशा
समता भाव रखें बिना तपस्या किसी काम की नहीं।बाह्य तप के साथ अंतरंग तप जरूरी है। इसमें प्रायश्चित और विनय जरूरी है।विनय भी तप है।विनय के साथ रहें और स्वाध्याय अवश्य करें। मुनि सागर महाराज ने कहा आज व्यक्ति के पास धर्म आराधना, स्वाध्याय के लिए समय नहीं है, लेकिन मोबाइल चलाने तथा फालतू बातें करने के लिए समय है।आज
समय का सदुपयोग नहीं हो रहा है। संसार में तप रहे हैं,व्यापार ,व्यवसाय में तप रहे,लेकिन आत्म कल्याण के लिए समय निकालें। शक्ति के अनुसार तप अवश्य करें। हमारी अर्थात जैन धर्म की तपस्या कड़क हो गई है, हमने समस्या बनाई है।मन नजदीक हो, धर्म सरल हो। सभी को तप करने का अवसर देवें। भावों में निर्मलता बनाएं। सभी को धर्म से जोड़ कर महावीर स्वामी के जन्म कल्याणक महोत्सव को भव्य बनाएं। किला मंदिर पर पंच परमेष्ठी विधान भक्ति भाव के साथ किया गया।