पत्रकार आनंदअग्रवाल
नर्मदा पुरम जिले में वर्षा ऋतु में होने वाली बीमारियों से बचने स्वास्थ्य विभाग ने दी सलाह
वर्षा ऋतु में होने वाली बीमारियों डेंगू एवं मलेरिया से बचाव के उपाय बताए
नर्मदापुरम स्वास्थ्य विभाग द्वारा डेंगू एवं मलेरिया, सर्पदंश एवं वर्षा ऋतु में होने वाली बीमारियों से जनमानस को बचाने के लिए सलाह दी गई है। वर्षा ऋतु में दूषित जल के सेवन से टाइफाइड पीलिया, डायरिया, पेचिश एवं हैजा जैसी बीमारियां फैलती हैं। साथ ही बरसात के मौसम में डेंगू एवं मलेरिया भी फैलता है। इसके लिए सलाह दी गई है कि पेयजल के रूप में शुद्ध उबला हुआ जल का उपयोग करें। कुछ भी खाने के पहले व शौच के पश्चात साबुन से अवश्य हाथ धोयें। शुद्ध पेयजल की कमी के कारण देश में जल जनित रोगों से सबसे अधिक यानी लगभग 80 प्रतिशत मौतें होती हैं। बारिश में यह समस्या बढ़ जाती है।
मलेरिया डेंगूरोग
स्वास्थ्य विभाग ने बताया कि बरसात में मलेरिया/डेंगू रोग भी फैलता है, जिसमें मरीज को ठण्ड लगकर बुखार आता है। प्राय: खेत, तालाब, गड्ढे, खाई, घर के आसपास रखे हुए टूटे-फूटे डब्बे, पुराने टायर, पशु के पानी पीने का हौद इत्यादि में बरसात के दिनो में जल जमा हो जाता है। इस प्रकार के भरे हुए पानी में मच्छर के लार्वा पैदा होते हैं, जो बाद में मच्छर बनकर रोग फैलाते हंै। मलेरिया से बचाव हेतु घर के आसपास जल जमा न होने दें, रुके हुए पानी में मिट्टी का तेल या जला हुआ ऑयल डालें। कूलर, फूलदान, फ्रिज ट्रे आदि को सप्ताह में एक बार अवश्य साफ करें। सोते समय मच्छरदानी का उपयोग करें। कीटनाशक का छिडक़ाव करवायें, मलेरिया रोग हो जाने पर खून की जांच अवश्य करायें एवं चिकित्सक की सलाह से पूर्ण उपचार लें।
लक्षण ठंड लगने के साथ अचानक तेज बुखार चढ़ना
सिर, मांसपेशियों तथा जोड़ों में दर्द होना
आंखों के पिछले भाग में दर्द होना जो आंखों को दबाने या हिलाने से और भी बढ़ जाता है
अत्यधिक कमजोरी लगना, भूख में बेहद कमी तथा जी मचलना मुंह के स्वाद का खराब होना
गले में हल्का सा दर्द शरीर पर लाल ददोरे (रैश) का होना उपचार व देखभाल घर पर ही की जा सकती है
पेरासिटामॉल की गोली ले सकते हैं
यदि बुखार 102 डिग्री से अधिक है तो बुखार कम करने हाइड्रोथेरेपी (जल चिकित्सा) करें
सामान्य रूप से भोजन देना जारी रखें रोगी को आराम करने दें आंखों का रोग मानसून के दौरान बहुत से लोगों को आंखों के रोग हो जाते है। आंखों में खुजली एवं आंखें लाल हो जाती हैं, आंखें चिपचिपी हो जाती हैं, सफेद और पीले रंग का पदार्थ जमा हो जाता है। इस रोग को आई-फ्लू, कंजक्टिवाइटिस या आंखें आना के रूप में जाना जाता है। कंजेक्टिवाइटिस का संक्रमण आपसी संपर्क के कारण फैलता है। इस रोग का वायरस संक्रमित मरीज के उपयोग की किसी भी वस्तु जैसे, रुमाल, तौलिया, टॉयलेट की टोंटी, दरवाजे का हैंडल, टेलीफोन के रिसीवर से दूसरों तक पहुंचता है। आंखें आने पर बार-बार अपने हाथ एवं चेहरे को ठंडे पानी से धोयें, परिवार के सभी सदस्य अलग-अलग तौलिये एवं रुमाल का उपयोग करें, स्वच्छ पानी का उपयोग करें, बार-बार आंखों को हाथ न लगायें, धूप के चश्मे का प्रयोग करें, चिकित्सक को दिखायें।
सर्पदंश से बचाव
वर्षा ऋतु में सर्पदंश के प्रकरण होते है, जिनसे बचाव हेतु कुएं या गड्डे में अनजाने में हाथ न डाले, बरसात में, अंधेरे में नंगे पाँव न घूमे, जूतों को झाड़ कर पहने, सांप दिखने पर पास न जाये, दूर से भगाएं, सर्पदंश से घबराये नहीं, व्यक्ति को सुरक्षित स्थिति में लिटाकर स्थिर करें, काटे हुये अंग के रक्त प्रवाह को नियंत्रित करें आवश्यकतानुसार स्थिरीकरण हेतु प्रेशर पैड का उपयोग करें। सांप के कटे घाव पर चीरा लगाने, जोर से रगड़ने, मालिश करने, सफाई करने, जड़ी-बूटी/रसायनों का उपयोग न करें, ताकि संक्रमण तथा विष अवशोषण को नियंत्रित किया जा सके। सर्पदंश के रोगी को समीपस्थ अस्पताल पहुंचाये