श्रावणी पूर्णिमा में ब्राह्मणों को जनेऊ धारण करना अनिवार्य है : NN81

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श्रावणी पूर्णिमा में ब्राह्मणों को जनेऊ धारण करना अनिवार्य है : NN81

21/08/2024 | August 21, 2024 Last Updated 2024-08-21T09:08:44Z
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 स्लग :----श्रावणी  पूर्णिमा में ब्राह्मणों को जनेऊ धारण करना अनिवार्य है। 




श्री बाबाजी द्वारा सन् 1949 से ब्राहम्णो को जनेऊ धारण करवा रहे है। 


सदियों से परंपरा चली आ रही है। 


 भारतीय सनातन संस्कृति में वैदिक संस्कारो  से बीज बोये जाते हैं। 

     

मनावर  धार से हर्ष पाटीदार की रिपोर्ट। 

विओ: --

"यज्ञोपवीतम परमं पवित्रम् " जैसे वैदिक मंत्रोच्चार के साथ श्रवणी उपाक्रम के अवसर पर ब्रह्मण समाज श्रीबालीपुरधाम मंडल द्वारा ऊंकारेश्वर  के अभयघाट परयज्ञोपवीत संस्कार का आयोजन किया गया।  सौर भाद्र पद  एवं श्रवण नक्षत्र होने के कारण श्रावणी पूर्णिमा का कार्यक्रम दोपहर 2:00 बजे से प्रारंभ हुआ, जो देर रात तक चला। 

              संत शिरोमणि श्री गजानन जी महाराज अंबिका आश्रम श्रीबालीपुरधाम के  पद चिन्हो पर चलते हुए उनके शिष्य श्री योगेश जी महाराज ने श्रावणी पूर्णिमा पर ओंकारेश्वर में ब्राह्मणों एवं श्रीसुधाकर जी महाराज को शामिल कर जनेऊ धारण की। प्राचीन काल में श्रावणी उपाकर्म का ज्यादा महत्व था। बालकों को गुरुकुल भेजा जाता था ।उन्हे  द्विज बनाया जाता था। भारतीय सनातन संस्कृति में बालको को वैदिक संस्कार डाले जाते थे। यज्ञोपवीत संस्कार में ब्राह्मणों ने पुरानी जनेऊ त्यागकर नयी जनेऊ  धारण के साथ धर्म के प्रति  आस्था रखने का संकल्प लिया और वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूजा अर्चना की। महाराज ने आगे बताया कि यज्ञोपवीत  संस्कार योग्य पवित्र संस्कार के माध्यम से वर्ष पर्यन्त तक के कर्म का प्रायश्चित किया जाता है । यह कार्यक्रम श्रावणी कर्म सावण की पूर्णिमा को होता है। ब्राह्मणों को संगठित कर  एकरूपता लाने के लिए एक स्थान पर  यज्ञोपवीत बदलने का आयोजन किया गया। यज्ञोपवीत  संस्कार में 143 ब्राह्मणों ने जनेऊ धारण की। सनातन हिंदू धर्म के 16 संस्कारो  मे से एक जनेऊ संस्कार भी है ।ब्रह्म तत्व की सिद्धि के लिए जनेऊ धारण करना अति आवश्यक है।

                  श्री सदगुरु सेवा समिति के जगदीश  पाटीदार ने बताया कि  जनेऊ धारण करने की  व्यवस्था बाबाजी द्वारा सन् 1949 से ब्राहमणों से करवा रहे  हैं। उसी व्यवस्था  को सुचारू से चलाने के लिए श्री योगेश जी महाराज द्वारा परंपरा अनुसार कार्य को अंजाम  दे रहे हैं । आचार्य दुर्गा शंकर तारे, पंडित बंटी महाराज, रवींद्र शुक्ला , अरुण महाराज द्वारा हिमाद्री सुनाई गई ।गुरु के सानिध्य में गौदुग्ध, दही, घृत,दूर्वा ,गोबर ,पवित्रा,कुशा,  शहद, गंगाजल से स्नान कर वर्ष में जाने- अनजाने में हुए पापों का प्रायश्चित कर जीवन को सकारात्मक दिशा  देते हैं। स्नान  से में आत्म शुद्धि होती है ।भोलेनाथ की आरती बाबा जी की आरती कर कार्यक्रम का समापन किया गया। अंत में भंडारा हुआ। श्री योगेश जी महाराज एवं सुधाकर जी महाराज भक्तों के साथ श्री ऊंकारेश्वर और ऊंकारममलेश्वर ज्योर्तिलिंग के दर्शन किये।