हरिहर मिलन और बैकुंठ चतुर्दशी के पर्व पर गुलाटी मे देव दीपावली उत्सव धूमधाम से मनाया गया : NN81

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हरिहर मिलन और बैकुंठ चतुर्दशी के पर्व पर गुलाटी मे देव दीपावली उत्सव धूमधाम से मनाया गया : NN81

15/11/2024 | November 15, 2024 Last Updated 2024-11-15T11:03:00Z
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 स्लग---हरिहर मिलन  और बैकुंठ चतुर्दशी  के पर्व पर गुलाटी मे देव दीपावली उत्सव धूमधाम से मनाया गया ।


श्री गजानन महाराज के शिष्य श्री 

योगेश जी महाराज एवम सुधाकर जी महाराज की अगुवाई में गुलाटी मे शोभायात्रा निकाली ।


मनावर धार से आशीष जौहरी की रिपोर्ट।


विओ:---


नर्मदा तट के उतरी छोर पर बसे श्रीबालीपुरधाम में श्रीगजानन जी महाराज की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से देव -दीपावली उत्सव कार्यक्रम पौराणिक कथा एवम वैदिक परंपरा के अनुसार मनाया गया। सनातन संस्कृति और देवताओं द्वारा प्रारंभ किए गए दीप प्रचलित को वर्तमान में भी गुरु भक्तों ने बनाए रखा। श्री श्री 1008 श्री गजानन जी महाराज ने देव- दीपावली उत्सव के सम्बंध  मे कथा गुरु भक्तों को को सुनाई थी। उसी आधार पर यह देव -दीपावली कार्यक्रम  हो रहा है । श्री बालीपुर धाम से गुलाटी तक बाबाजी  की पालकी यात्रा को गुलाटी में शोभायात्रा निकाली गई। सर्वप्रथम गुलाटी के काकड़ पर बाबा जी की पूजा -अर्चना की गई ।संत श्री सुधाकर जी महाराज ने सभी गुरु भक्तों से आह्वान किया कि देवताओं द्वारा जो परम्परा बनाई गई उसे जीवित रखना हमारा सभी का कर्तव्य  है। हम धर्म का अनुसरण कर सके और उसका पालन बनाए रखें ।जीवन को सफल बनाने के लिए  हर संभव कोशिश करना चाहिए। संसार में रहकर विपत्तियों से बचने के लिए घर-घर प्रतिदिन दीप प्रज्वलित करना चाहिए। प्राचीन परंपरा और संस्कृति में आधुनिकता की शुरुआत काशी क्षेत्र ने विश्व स्तर पर एक नए अध्याय का आविष्कार किया जिससे यह विश्व का आयोजन लोगों को आकर्षित करने लगा । ग्राम गुलाटी में एक ही पोशाक में युवतियों  ने नृत्य किया।

 

यह है कथा ।


जब तीनों लोकों में  त्रिपुरासुर  राक्षस का राज चला करता था, उस समय देवता गण और आम जन परेशान हो गए थे ,ओर  तो ओर  राक्षस  ने धीरे -धीरे स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था । देवता गण घबरा गए ।इस स्थिति में देवताओं द्वारा भगवान शिव की पूजा -अर्चना कर तपस्या की।  उसी तपस्या से  शिवजी प्रसन्न होकर देवताओं को वरदान मांगने के लिए कहा। जब देवताओं ने कहा कि त्रिपुरासुर राक्षस द्वारा स्वर्ग में कब्जा कर लिया गया और आम जनमानुष को परेशान करने लग गया । कार्तिक पूर्णिमा के दिन शिव जी ने राक्षस  का वध किया ।तब देवताओं ने स्वर्ग लोक में दीप जलाए।तभी से देव -दीपावली मनाई जाने लगी। काशी -वाराणसी में देवताओं द्वारा 92  पंचम घाटो पर दीपों की रोशनी की थी ।हमारी सनातन संस्कृति में प्रकृति को देव माने  जाने की परंपरा  अनादि काल से चली आ रही है। हरिहर मिलन और बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व पर मनायी जाने वाली देव-दीपावली वस्तुतः प्रकृति के संरक्षण का ही पर्व है। जिला पंचायत सदस्य  कपिल सोलंकी ,अध्यापक  जगदीश पाटीदार ,नवनीत पाटीदार, पन्नालाल गहलोत , दशोरे जी भोपाल एवम अन्य गुरु भक्त यात्रा में सम्मिलित हुए।