भागवत कथा से जीवन मंगलमय हुआ।
मनावर धार से आशीष जौहरी की रिपोर्ट।
*स्लग:----श्रीमद्भागवत कथा के सातवें दिन भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। कथा व्यास अंतर्राष्ट्रीय पंडित धर्मेन्द्रकृष्ण नागरजी ने सातवें दिन पूरे एक सप्ताह की कथा सारगर्भित कथा सुनाई। कथा सप्ताह के सार स्वरूप की पुनरावृत्ति के बाद उन्होंने सुदामा चरित्र और परीक्षित मोक्ष का मार्मिक प्रसंगों का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि ईश्वर के परम भक्त जितेंद्रिय सुदामा जी भगवान कृष्ण के अनन्य मित्र थे। उन्होंने भिक्षा मांगकर अपने परिवार का पालन पोषण किया। अत्यंत गरीबी और विपन्नता के बाद भी उन्होंने हमेशा सदमार्ग और कर्तव्य परायणता के मार्ग का अनुशीलन किया। सुदामा जी को भगवान पर दृढ़* विश्वास था, वे सदा ईश्वर में निमग्न रहते। *उनकी पत्नी सुशीला सुदामा से बार बार आग्रह करती कि आपके मित्र तो द्वारकाधीश हैं, उनसे जाकर मिल आइये। शायद वह हमारी कुछ मदद कर दें*
अंतर्राष्ट्रीय पंडित नागरजी ने कहा*
*पत्नी के कहने पर सुदामा जी द्वारका पहुंचते हैं। द्वारपाल सुदामा के* *आगमन की सूचना भगवान कृष्ण को देते हैं। द्वारपाल कहता है सुदामा नाम का कोई ब्राह्मण आया है। यह सुनकर द्वारकाधीश भगवान* *श्री कृष्ण नंगे पैर दौड़े आते हैं और अपने मित्र को गले लगा लेते हैं। सुदामा की दीन दशा देखकर भगवान की आंखों से अश्रुधारा निकल पड़ती है। भगवान की* *पटरानियां यह देखकर विस्मित रह जाती हैं।फिर बालसखा को अपने सिंहासन पर बिठाकर भगवान श्री कृष्ण उनके चरण धोते हैं। सुदामा भेंट में लाई गई मुट्ठी भर चावल कृष्ण* *प्रसाद स्वरूप खाते हे और परमात्मा सुदामा जी को धनवान बना देते हे द्वारकापुरी में सुदामा जी की खूब सेवा की जाती है। सभी पटरानियां सुदामा जी से आशीर्वाद लेती हैं। फिर सुदामा जी* *विदा लेकर अपने निजस्थान को प्रस्थान करते हैं*। *निजधाम में आकर उन्हें आश्चर्य होता है। भगवान की कृपा से* *पर्णकुटीर के स्थान पर एक महल बना पाते हैं और पत्नी तथा बच्चों को राजसिक वस्त्र आभूषणों में पाते हैं। इस तरह दीनहीन सुदामा जी* *पर भगवान की कृपासुधा बरसती है और वह परिवार के साथ सुखी जीवन बिताते हैं*। अंतर्राष्ट्रीय पंडित धर्मेन्द्रकृष्ण नागरजी ने कहा सच है भक्तो जो परमात्मा की भक्ति करता है वह भक्ति एकदिन अवस्य अपना जीवन बदल सकती है इसलिए जीवन मे निस्वार्थ भाव से कृष्ण की भक्ति करते रहो।