कांग्रेस सरकार के इमरजेंसी में उखड़ी रेलवे लाईन की सुविधा मोदी सरकार में मिलने की लोगो को उम्मीद : NN81

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कांग्रेस सरकार के इमरजेंसी में उखड़ी रेलवे लाईन की सुविधा मोदी सरकार में मिलने की लोगो को उम्मीद : NN81

16/12/2024 | दिसंबर 16, 2024 Last Updated 2024-12-16T05:31:21Z
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 *कांग्रेस सरकार के इमरजेंसी में उखड़ी रेलवे लाईन की सुविधा मोदी सरकार में मिलने की  लोगो को उम्मीद*


 *उज्जैन-झालावाड़ रेलवे लाइन की डीपीआर इसी माह बनेगी*



आगर मालवा/ (*नज़ीर अहमद की खास रिपोर्ट*

)मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच रेल तंत्र को मजबूत बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इन दोनों राज्यों के लिए तीन नई परियोजनाओं की तैयारी की जा रही है। 

उज्जैन-झालावाड़ रेलवे लाइन की डीपीआर इसी माह बनेगी, दिल्ली पहुंचने का समय एक घंटा कम होगा।

उज्जैन-आगर-झालावाड़ तक नई रेलवे लाइन के लिए फाइनल लोकेशन सर्वे (एफएलएस) के आधार पर फाइनल डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार किए जाने की 31 दिसंबर 2024 की डेडलाइन तय कर ली है। ये डेडलाइन पश्चिम मध्य रेलवे के कोटा मंडल ने तय की है यदि ऐसा हुआ तो नए वर्ष में प्रोजेक्ट पर काम आगे बढ़ने की उम्मीद हैं। 


सांसद अनिल फिरोजिया की मांग पर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने उज्जैन-आगर-झालावाड़ तक नई रेल लाइन की डीपीआर के लिए एफएलएस को स्वीकृत दी थी। इस सर्वे व डीपीआर के लिए केंद्र सरकार ने 4.75 करोड़ रुपए मंजूरी किए थे। इसी क्रम में पश्चिम मध्य रेलवे के कोटा मंडल ने एफएलएस का वर्कऑर्डर हैदराबाद की फर्म को जारी किया था। हाल ही में कोटा में हुई पश्चिम मध्य रेलवे कोटा मंडल के अधिकारियों, सांसदों व उनके प्रतिनिधियों की बैठक में उक्त डीपीआर की डेडलाइन सामने आई। सांसद फिरोजिया के प्रतिनिधि के रूप में बैठक में मौजूद रहे महेंद्र गादिया ने जब जीएम से  पूछा कि सर्वे के बाद डीपीआर कब तक तैयार हो जाएगी? तो उन्होंने 31 दिसंबर की डेडलाइन बताई। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि पश्चिम मध्य रेलवे मंडल का कोटा मंडल इस डेडलाइन में डीपीआर तैयार करके रेलवे बोर्ड को प्रस्तुत कर देगा। यदि ऐसा हुआ तो नए वर्ष 2025 में इस रेल लाइन के लिए काम आगे बढ़ने लगेगा। हालांकि वित्तीय स्वीकृति के बाद ही मौके पर काम दिखाई देगा। डीपीआर में मुख्य रूप से पटरी बिछाने, पुल-पुलिया-अंडर पास व स्टेशनों के निर्माण आदि के लिए जरूरी व उपयुक्त जमीन का पता चलेगा, लागत की स्थिति भी स्पष्ट होगी।


*उज्जैन से आगर तक सड़क के एक तरफ की बसाहट रेलवे की पुरानी लाइन पर*


वर्तमान में उज्जैन से आगर की पुरानी रेलवे लाइन के स्थान पर कई तरह के निर्माण हो गए हैं। बसाहट के अलावा बाजार, जंगल व खेत भी हैं। इन सभी के बीच मौके पर अभी भी पुरानी रेलवे लाइन के स्ट्रक्चर उज्जैन से आगर तक कई स्थानों पर देखे जा सकते हैं। बताया जाता है कि इस लाइन पर आगर से उज्जैन तक चलने वाली ट्रेन के लिए मकोड़ियाआम, घट्टिया, ढाबलाहर्दू, तनोड़िया में स्टेशन भी थे। घट्टिया, पिपलिया व मकोड़िया आम नाका में टिकट घर भी हुआ करते थे। ये लाइन वर्तमान के फोरलेन-टू-लेन सड़क से सटी हुई ही थी। यानी उज्जैन से आगर सड़क के एक तरफ की बसाहट रेलवे की इस पुरानी लाइन वाले स्थान रही है। घट्टिया व घौंसला के रहवासी मांग करते आ रहे हैं कि नई रेलवे लाइन को इस तरह से बिछवाया जाए कि आबादी क्षेत्र प्रभावित न हो, नुकसान न हो।


*भूमाफियाओ ने रेल्वे के निशान भी मिटाकर बना दिया रास्ता*


आगर से तनोडिया तक कई जगह रेल्वे पटरी डली हुई थी जिसके निशानात भी मौजूद थे लेकिन कुछ भूमाफियाओ की जमीन रेल्वे के काकड़ से लगी हुई थी जिस कारण मुख्य सड़क मार्ग पर उसका फ्रंट नही था जब जमीन के सौदे होने लगे तो रेल्वे की भूमि से निशान खोदकर उस जमीन पर कब्जा कर लिया और कुछ पटवारियों की भी इसमें संदिग्ध भूमिका रही जिस कारण उक्त भूमि को बेचने में भूमाफिया को आसयानी हो गई यदि वो रेल्वे ट्रेक नही हटाते तो जमीन नही बिकती इनकी जमीन की आड़ में रेल्वे की भी जमीन बेच डाली जिस पर खरीददार ने अवैध कब्जा कर लिया वैसे तो आगर जिला मुख्यालय है मगर कोई जांच नही।

*1930-40 के दशक में उज्जैन-आगर रेलवे लाइन डाली गई*


बताया जाता है कि 1930 से 1940 के दशक के बीच उज्जैन से आगर तक रेलवे लाइन डाली गई थी। इस पर चलने वाली नैरो गेज ट्रेन प्रमुख रूप से गांव वालों के लिए आवागमन का प्रमुख साधन थी क्योंकि तब बसें भी कम चलती थी और सड़कें भी अभी की तरह डेवलप नहीं थी बाद में ये रेल लाइन 1975 से 1977 के आसपास बंद कर दी गई। उज्जैन में बढ़ती पर्यटक श्रद्धालुओं की संख्या, सिंहस्थ व व्यापार-व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए इस लाइन को पुनः शुरू करने की जरूरत महसूस होती रही है।


*नई रेल लाइन डलने से यह फायदा*



मुख्य रूप से उज्जैन से दिल्ली पहुंचने के लिए दूरी कम होगी। अभी उज्जैन से नागदा व यहां से झालावाड़ होते हुए दिल्ली पहुंचा जाता है इस नई लाइन से सीधे दिल्ली पहुंच सकेंगे तो 60 से 80 किमी सफर कम होगा। ये लाइन दिल्ली-मुम्बई ट्रैक से जुड़ेगी इससे 1 घंटे का समय बचेगा इस लाइन से मप्र व राजस्थान जुड़ जाएंगे। श्रद्धालुओं व पर्यटकों को भी मदद मिलेगी उज्जैन व आगर जिले का व्यापारिक विस्तार होगा, अंचलों में भी डेवलमेंट बढ़ेगा औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

पश्चिम मध्य रेलवे ने उज्जैन से झालावाड़ के लिए नई रेल सेवा की तीन योजनाएं तैयार की हैं, पिंक, ब्लू और रेड इनकी लागत 2836 करोड़, 2727 करोड़ और 2697 करोड़ रुपये है। योजनाओं में अलग-अलग रूट और पुलों की संख्या निर्धारित की गई है तीनों योजना में उज्जैन से आगर तक का रूट अलग-अलग है राशि कम ज्यादा होने का कारण पटरी की लंबाई, कर्व और मुख्य पुलों की संख्या है कहा गया है कि मंत्रालय को जो योजना पसंद आएगी उसे ही धरातल पर उतारा जाएगा।


*उज्जैन से झालावाड़ तक का सफर*


लोगों को उज्जैन से झालावाड़ तक का सफर वाया आगर, सुसनेर, सोयतकलां, रायपुर कराने के लिए इसी वर्ष फरवरी में केंद्रीय रेल मंत्री ने विस्तृत कार्य योजना बनाने को 4 करोड़ 75 लाख रुपये की मंजूरी दी थी।


*फिलहाल की स्थिति में योजना*


पिंक योजना 189.100 किलाेमीटर लंबी रेल लाइन बिछाने की है, जिसमें 38 कर्व, 64 पुल बनाना प्रस्तावित है।

ब्लू योजना 181.80 किलोमीटर लंबी रेल लाइन बिछाने की है, जिसमें 37 कर्व और 45 पुल बनाना प्रस्तावित है।

रेड योजना 177.860 किलोमीटर लंबी रेल लाइन बिछाने की है, जिसमें 36 कर्व और 34 पुल बनाना प्रस्तावित है।

तीनों योजना अधिकतम 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रेन चलाने को ध्यान में रखकर बनाई है।

तीनों योजना में उज्जैन से आगर तक का रूट अलग-अलग है।

पिंक योजना : उज्जैन से सुरासा, खेड़ावदा, पिपलोनकलां, आगर

ब्लू योजना : उज्जैन से उज्जैनिया, ढाबलाखुर्द, आगर

रेड योजना : उज्जैन से जगोटी, पिपलोनकलां, आगर

(नोट : तीनों योजना में आगर से झालावाड़ तक का सफर सुसनेर, सोयतकलां, रायपुर के रास्ते प्रस्तावित किया है।)


*सन् 1932 से 1975 तक उज्जैन-आगर के बीच चलती थी ट्रेन*


सन् 1932 से 1975 तक उज्जैन-आगर के बीच नैरोगेज ट्रेन चलती थी। उस समय चलने वाली ट्रेन का जेडबी टाइप का इंजिन (तब की कीमत एक लाख 61 हजार 276 रुपये) आज भी उज्जैन रेलवे स्टेशन परिसर में खड़ा है। पश्चिम मध्य रेलवे एक दशक पहले झालावाड़ से रामगज मंडी तक रेल लाइन बिछाकर ट्रेन का संचालन शुरू करा चुकी है मगर झालावाड़ से उज्जैन के बीच रेल अब भी कागजों पर ही चल रही है।

अभी ट्रेन द्वारा उज्जैन से झालवाड़ जाने के लिए लोगों को रामगज मंडी स्टेशन उतरना होता है। यहां से झालावाड़ जाने के लिए प्रतिदिन सुबह 8.10 बजे, दोपहर 3.58 बजे और रात 8.45 बजे ट्रेन मिलती है। उज्जैन से झालावाड़ का सफर आसान बनाने के लिए पिछले साल राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने उज्जैन से घोंसला तक का रास्ता फोरलेन सड़क में तब्दिल किया है। इसके आगे झालावाड़ तक सड़क 10 मीटर चौड़ी की है। सिंहस्थ- 2028 से पहले इस हिस्से को भी फोरलेन में तब्दिल करने की योजना प्रस्तावित है।

सन 1975 में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई इमरजेंसी में कांग्रेस की इंदिरा सरकार में आगर जिले से छीनी रेलवे लाईन की सुविधा को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में अनुमति मिलने की उम्मीद आगर जिले वासियों को जगी है। स्मरण रहे कि वर्ष 2018-19 में जिले के सुसनेर निवासी सामाजिक कार्यकर्ता विष्णु भावसार ने उक्त रेलवे लाईन की स्वीकृति के लिए पूरे आगर जिले में अभियान चलाकर 5 हज़ार मांग पत्र उज्जैन रामगंजमंडी एवं शामगढ़ हरदा रेलवे लाईन की स्वीकृति के लिए चलाकर पूरे जिले से वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के पूर्व 5 हज़ार मांग पत्र पूरे जिले से प्रधानमंत्री कार्यालय डाक से भिजवाए थे। जिस पर अभी 2022-23 विधानसभा चुनाव में गृहमंत्री अमित शाह ने शाजापुर में चुनावी सभा को सम्बोधित कर उज्जैन रामगंजमंडी रेलवे लाईन के सर्वे की धोषणा की थी। वही तकालीन रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने भी शाजापुर की चुनावी सभा मे शामगढ़ हरदा रेलवे लाईन की 42 साल पुरानी फ़ाइल खोलने की धोषणा की थी। हालांकि अब मंत्रालय को जो योजना पसंद आएगी उस पर ही काम पूरा किया जाएगा।



*उज्जैन आगर रेल लाइन एक नजर में*


पहली बार इस पर ग्वालियर स्टेट रेलवे के द्वारा 15 मार्च 1932 को नैरो गेज की ट्रेन का संचालन किया गया । जिसे 1975 में बंद कर दिया गया था और बाद में खुर्द बुर्द कर दिया गया जनता में धीरे धीरे इसे पुनः शुरू करने की मांग उठी तब पहला सर्वे 1998 में हुआ जो नकारात्मक रहा और ठंडे बस्ते में चला गया ।

पुनः 2007-08 में सर्वे हुआ जिसका भी परिणाम नकारात्मक ही रहा जिसके कारण फिर से ठंडे बस्ते में चली गई 

एक बार फिर इसका प्रस्ताव तैयार हुआ और इसका विस्तार झालावाड़, रामगंजमंडी तक करने का खाका खींचा। पर 2015-16 में संपन्न हुए सर्वे में 190 किलोमीटर रूट के लिए 2100 करोड़ की लागत आंकी गई और नकारात्मक ही रहने के कारण इसे पुनः ठंडे बस्ते में डाल दिया।

समय समय पर जन जागरण मंच, रेल लाओ समिति आदि संगठनों के नेतृत्व में रेल विहीन क्षेत्र की जनता द्वारा आंदोलन किए गए, सामाजिक कार्यकर्ता विष्णु भावसार ने पूरे जिले में अभियान चलाकर आम लोगो से 5 हज़ार मांग पत्र प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भेजने का अभियान 2018-19 में चलाया गया था। जिसके फलस्वरूप मुख्यमंत्री मोहन यादव ने पद ग्रहण करते ही इस रेल लाइन का मुद्दा प्रमुखता से उठाया और इसे अप्रूवल दिलवा कर फाइनल लोकेशन सर्वे के लिए स्वीकृति दिलवाई।

*इनका कहना*

"उज्जैन-आगर-झालावाड़ रेलवे लाइन के लिए डीपीआर 31 दिसंबर तक तैयार हो जाएगी। ये डेडलाइन कोटा में हुई पश्चिम मध्य रेलवे मंडल की बैठक में जीएम ने बताई है। मैं, सांसद के प्रतिनिधि के रूप में बैठक में शामिल हुआ था और इस बारे में सवाल किया था। बहरहाल उम्मीद हैं कि नए वर्ष में इस प्रोजेक्ट के लिए काम आगे बढ़ेगा।"- 

*महेंद्र गादिया, सांसद प्रतिनिधि*

फोटो/ 1:नज़ीर अहमद आगर

फोटी 2 : आगर जिले से इमरजेंसी में छीनी रेल सुविधा का इंजन उज्जैन रेलवे स्टेशन पर आज भी खड़ा है।


फोटो 3  : अब मिल सकती है आगर, सुसनेर, सोयतकलां की जनता को रेल की सुविधा।


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