जब शाति और सद्भाव से मना गम और शहादत का पर्व मुहर्रम
जिला संवाददाता राघवेंद्र औदीच्य
अखाडे के साथ निकला मातमी जुलूस उठी सवारिया
गंजबासौदा। सैकड़ों वषों से चली आ रही हिंदु मुस्लिम एकता का उत्तर प्रतीक इमाम हसन इमाम हुसैन और उनके 72 साथियो के कर्बला मे शहादत की याद मे मनाया जाने वाला गम शहादत का अजीमो शान पर्व मुहर्रम पूरी परंपरागत रूप मे प्रेम भाईचारा और सद्भाव से बुधवार को मनाया गया। ऊर्दू मास का प्रथम मास के रूप मे शहादत का महापर्व मुहर्रम आता है। इसी मास की सात तारीख से सवारियो के उठने का सिलसिला शुरू होता है दस तारीख को पूरे शहर में सफर कर कर्बला मे विसर्जन कर पूरा होता है। सवारियो मुख्य रूप से सदर बाजार दलाल वाले बाबा साहब महलो वाले बाबा के मुकाम पर हाजी हनीफ फजलानी के सर बुजुर्ग की सवारी आती है। नगर में सबसे ज्यादा मुरीद भक्त यही महलो वाले बाबा के अस्ताने सावरकर चौक पर जमा होते है।
यहा पर दूर से लोग आकर अपनी परेशानी से निजात है और दुख दूर कर खुशियो से मुस्कान के जाते है। इसी तरह एलिया वाली बडी सवारी अकील भाई के सर, छोटी सवारी हबीब भाई के सर आती है। मुस्लिम समुदाय अलावा हिदु भाइयो के सर भी सवारी आती थे। है जिनमे मुख्य रूप से सैयद साहब की सवारी के सर, इमली वाली सवारी, काला पीर की सवारी नननू छारी के सर उठती है। लाल पठार और बेदनखेडी, खारा कुआ फी गंज पीर बाबा की सवारी स्टेशन रोड से ऊठती इसी तरह मुहर्रम की दस तारीख को कर्बला में स्थित इमाम हसन इमाम हुसैन के मुबारक के प्रतीक ताजिऐ गाँधी चौक मैदान में रखे जाते है जिनमे मुंशी खान महबूब मंसूरी का सबसे पुराना ताजिया, अकबर भाई मुननू भाई रफीक भाई शान मियां के ताजिऐ मुख्य है। इन ताजियो के अलावा एक बेदनखेडी, पचमा, देरखी से भी ताजिऐ रखे है। जाते है। ग्राम देरखी मे मजलिस होती है
इसके बाद अलाव लगाया जाता है जिसमे नंगै पैर मुरीद निकल जाते है और उनके पांव का अलाव की आग भी कुछ नहीं बिगाड पाती। इसी के साथ नगर में दो अखाडे कदीमी अखाडा व हैदरी अखाडा मे हिंदु मुस्लिम दोनो ही धर्मो के पहलवान मिलकर प्रेम भाईचारा के साथ कला का प्रदर्शन करते है।
मोहर्रम कमेटी के अध्यक्ष नदीम अली उपाध्यक्ष राघवेंद्र औदीच ने बताया शहर मे यह पर्व प्रेम भाईचारा राष्ट्रीय एकता का संदेश देता है। घर घर सवारियो का स्वागत फूल मालाऔ इत्र से होता है। इसी के साथ रूह अफजा शर्बत की भी विभिन्न स्थानो पर स्टाल लगाकर पिलाया जाता है। वही रेबडी के स्टाल लगाकर प्रसाद के रूप में बाटा जाता है।