*⏮️ विशिष्ट अतिथि के रूप में नहीं मिल पाया कोई आदिवासी,जनजातीय गौरव दिवस मे अतिथि का टोंटा*!
*👉जनजातियों का हक खा कर फर्जी आदिवासी कर रहे हैं मौज!*
✍️
राजनांदगांव //जनजाति विकास को लेकर जो बातें सामने आती है उसमें आज भी वनांचल क्षेत्र में स्थितियां कोई खास बदली नहीं है उच्च पदों में या जनप्रतिनिधि की हैसियत रखने वाले लोगों को छोड़कर, आज भी सर्वांगीण विकास की जनजाति समुदाय बांट जोह रहा है । कुछ जनप्रतिनिधि और अधिकारी अगर उच्च पदों मे आसीन होने के पश्चात ऐसा मान लेना कि समस्त जनजाति समुदाय विकास मे डुबकी लगा रहा है तो ऐसा कहना और मानना बेमानी ही होगा। भले ही छत्तीसगढ़ प्रदेश में जहां मुख्यमंत्री आदिवासी समुदाय से है और देश के सर्वोच्च पद में महामहिम राष्ट्रपति भी। बावजूद इसके भाजपा के शासनकाल में आदिवासी या जनजाति समुदाय के जनप्रतिनिधियों का टोंटा बरकरार हो तो इतना उदाहरण ही काफी है यह समझने की केवल उल्लास के बुते गौरव गाथा की कड़ी अग्रसर तो नहीं किया जा रहा है। शासन प्रशासन द्वारा किए जा रहे हैं कार्यक्रम में कहीं भी आदिवासी या जनजातीय जनप्रतिनिधि आमंत्रण में नजर नहीं आ रहा है या इसका टोंटा ही एक मात्र कारण हो सकता है,ऐसे में इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि क्या आदिवासी समाज के गौरव के उपलब्धियां को लेकर जनजाति गौरव दिवस मनाया जा रहा है क्या उसके मायने धरातल पर सार्थक नजर आ रहे हैं अगर ऐसा है तो आमंत्रण में अब तक आदिवासी जनप्रतिनिधि का स्थान क्यों नहीं बन पाया यह सबसे बड़ा सवाल है ? क्या राजनांदगांव में होने जा रहे जनजाति गौरव दिवस की प्रासंगिकता पर सवाल खड़ा होना वाजिब नहीं जान पड़ता कि जिस समुदाय को लेकर गौरव गाथा का उल्लेख किया जा रहा है और वाकई क्या जनजाति समुदाय का सर्वांगीण विकास क्या हो चुका है या महज कार्यक्रमों के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि प्रदेश में जनजातीय गौरव महसूस कर रहे है।
*जनजातियों का हक खा कर रहे हैं मौज।*
प्रदेश में भले सरकार को 25 वर्ष होने जा रहे हैं लेकिन आज भी जनजातीय समाज का हक खाने वाले लोग मौज कर रहे हैं और कई मौज करके अब निवृत्त भी हो चुके है।प्रदेश में आज भी फर्जी आदिवासी मतलब जनजाति के रूप में अनेकों लोग सरकारी दफ्तरों में काबिज हैं जिन्हें हटाने का साहस न 15 वर्षों की रमन सरकार ना ही भूपेश बघेल सरकार कर सकी है और न ही वर्तमान सरकार इस मसले को लेकर तटस्थ दिख रही है । ऐसे स्थिति परिस्थितियों मे क्या महज गौरव गाथा के नाम समूचे आदिवासी समाज का सर्वांगीण विकास हो चुका है अगर समुदाय का विकास राज्य बनने के बाद आज भी नहीं हो पा रहा है और ऐसे कार्यक्रमों में जहां विशिष्ठ अतिथि के रूप में जनजाति समुदाय अपनी भागीदारी सुनिश्चित नहीं करा पा रहे हैं? तो ऐसे में क्या आज भी आमंत्रण को देखने के बाद लगता नहीं की उनके गौरव को गौरवान्वित करने में कहीं ना कहीं शासन और प्रशासन की कमी मौजूद है जिसकी जिम्मेदार हर सरकारें।.....